पटना: बिहार की संस्कृति बन चुके महापर्व छठ (Chhath Puja 2022) को मुख्य रूप से बिहार के साथ ही झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है. कार्तिक शुक्ल के पष्ठी को यह महापर्व मनाया जाता है इसलिए इसे षष्ठी पूजा भी कहते हैं. बिहारियों का सबसे बड़ा पर्व, छठ माना जाता है. छठ की महत्ता को इसी बात से समझा जा सकता है कि इसे हिंदुओं के साथ ही अन्य धर्मावलंबी भी मनाते देखे जाते हैं.
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छठ का पौराणिक महत्व:धीरे धीरे प्रवासी भारतीयों द्वारा लोकआस्था का यह महापर्व देश में ही नहीं बल्कि विश्वभर में प्रचलित हो गया है. इस पर्व में किसी मूर्ति की नहीं बल्कि सूर्य की उपासना की जाती है और इसे छठी मईया कहा जाता है. छठ पूजा की परंपरा कैसे शुरू हुई, इस संदर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं. एक मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया. सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी. सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था.
छठ को लेकर एक और कथा प्रचलित है. किवदंती के अनुसार जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था. इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया. सूर्य की उपासना सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अन्य कई देशों में भी होती है. लेकिन कहीं सूर्य को देवता तो कहीं देवी के रूप में पूजा जाता है. सूर्य की उपासना ऋग्वैदिक युग से ही होती रही है, जिनका ऋग्वैदिक नाम ‘सविता’ भी है. ऋग्वैदिक काल में वे जगत के चराचर जीवों की आत्मा हैं. वे सात घोड़े के रथ पर सवार रहते हैं और जगत को प्रकाशित करते हैं. वे प्रकृति के सर्वश्रेष्ठ रूप हैं. कालांतर में देशभर में उनकी पूजा प्रारंभ हुई.