पटना: 15 साल की जिस शासनकाल की तुलना कर नीतीश कुमार गद्दी पर बैठे हैं, अब एक बार फिर हाईकोर्ट सरकार से लगातार सवाल पूछ रहा है. हाईकोर्ट खुद ही सरकार को बुलाकर पूछ रहा है, डॉक्टर कहां है हाई कोर्ट को बताइए, ऑक्सीजन गैस क्यों नहीं है हाईकोर्ट को बताइए, जनता जो मर रही है इसका हिसाब कौन देगा हाईकोर्ट को बताइए. इस बद इंतजाम के लिए कौन जिम्मेदार कौन है हाईकोर्ट को बताइए.
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दरअसल, बिहार में कोरोना ने जिस तरीके से कहर बरपा रखा है उसमें बिहार के सुशासन वाली सरकार को ये समझ में ही नहीं आ रहा है कि वह क्या करें. बिहार में जिस तरीके से मौत हो रही है उसमें बिहार श्मशान में बदलता जा रहा है, बिहार में कोरोना को लेकर जो तैयारी सरकार को करनी थी वह हो नहीं पाई और कोरोना ने बिहार को लेकर जो तैयारी की है उससे कोरोना के काल में जिंदगी समा रही हैं. अपनों की चित्कार और डर मानवीय मूल्यों को तार-तार कर रहे हैं.
28 मार्च को बिहार में कुल 84 लोगों की मौत कोरोना से हो गई. यह वे आंकड़े हैं जो सरकार की फाइलों में लिखे जा रहे हैं. लेकिन, उनकी सुध लेने वाला कोई है ही नहीं जो अस्पताल तक पहुंच ही नहीं रहे हैं. 28 मार्च को 84 लोगों की मौत के बाद सरकार ने कई तरह के निर्देश इस बात को लेकर दिए कि कोरोना के लिए कड़े नियम लगाए जाएंगे, लेकिन बिहार में कोरोना है कि और कड़ा ही होता जा रहा है और 29 मार्च को 89 लोगों की जान कोरोना ले ली.
मुख्यमंत्री ने अपनी समीक्षा में कह दिया कोरोना को लेकर बिहार में और कड़े कदम उठाए जाएंगे, ताकि कोरोना को रोका जा सके लेकिन कोरोना को रोकने के लिए जो सरकार की तैयारी है, वह हाई लेवल मीटिंग से आगे जा ही नहीं पाई. लेकिन कोरोना ने लोगों को मारने के लिए जिस हाई स्पीड को पकड़ा है उसके आगे सरकार की पूरी व्यवस्था ही ध्वस्त हो चुकी है.
29 मार्च को ईटीवी भारत से बातचीत में बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने साफ कह दिया कि बिहार में लॉकडाउन नहीं लगेगा नीतीश कुमार लगातार बात कर रहे हैं और इस बात के दिशा निर्देश भी दिए जा रहे हैं कि आगे कैसे कोरोना को रोकने का काम करना है.
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बड़ा सवाल यही है कि आखिर सरकार को ये समझ ही क्यों नहीं आ रहा कि जब उनके पास ऑक्सीजन है नहीं, बेड की व्यवस्था नहीं है, डॉक्टर का इंतजाम नहीं है तो फिर अंशकालिक लॉकडाउन से सरकार भाग क्यों रही है और दूसरा सवाल यह भी है कि अगर सरकार लॉकडाउन नहीं लगाना चाहती है तो लोगों की जान बचाने के लिए कर क्या रही है.
दरअसल, बिहार में कोरोना से लड़ाई भी सियासी पचड़े में आ गई है. जिस तरीके से कोरोना लगातार और बढ़ रहा है नीतीश कुमार की बैठकें और उनके निर्णयों पर उनके सहयोगी भाजपा के लोग ही सवाल उठा रहे हैं. नीतीश सरकार ने कोरोना को रोकने के लिए जब नाइट कर्फ्यू लगाया था, तो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कह दिया था कि नाइट कर्फ्यू से कोरोना नहीं रुकेगा.
हालांकि, इसको लेकर जदयू के तरफ से प्रतिक्रिया भी दी गई कि अभी राजनीति करने का वक्त नहीं है, लेकिन ऑक्सीजन गैस कहां से मिलेगी इसकी जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं है. दो इंजन की बिहार में चल रही सरकार की बदइंतजामी जिस तरीके से बिहार के लोगों में मौत बांट रही है, उससे एक बात तो साफ है कि कोरोना को लेकर पहले क्या करना है, यह समझ में ही नहीं आया और जब कोरोना ने जिस रफ्तार को पकड़ ली है कि यह समझ ही नहीं आ रहा है कि अब किया क्या जाए.
हाईकोर्ट लगातार यह सवाल पूछ रहा है कि आपके पास ऑक्सीजन नहीं है इसका इंतजाम क्या है और सरकार जो जवाब दे रही है उससे हाईकोर्ट खुश नहीं है. अंदाजा लगाना सहज है कि जिस विकास की बात बिहार में हो रही है और 15 साल बनाम 15 साल की जिस तैयारी को लेकर नीतीश कुमार लगातार किस्सा कहानी कहते रहे थे उसी की एक बानगी यह भी है.
15 साल पहले नीतीश कुमार कहते थे कि बिहार की सरकार को हाईकोर्ट चलाता था और अब इस चल रही सरकार से हाईकोर्ट यह जानना चाहता है कि बिहार को चलाना कैसे हैं और बिहार चल कैसे रहा है सरकार इस बात की जानकारी दें. इसका जवाब आते-आते इसमें दो राय नहीं है कि बिहार की एक बड़ी आबादी काल कलवित हो जाएगी लेकिन सियासत है करनी जरूर है.
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बिहार के विकास की भी जो बात की जाए, लेकिन जिस विनाश की राह पर बिहार चल रहा है अगर उसकी रफ्तार और बढ़ी तो शायद सदियों तक बिहार को फिर विकास की डगर पर ले जाने की कहानी ही कही जाएगी. हकीकत यह है कि श्मशान में जिस तरह की मंडी लगी है, जिसमें बिहार के लोगों की लाशें पड़ी है अगर समय रहते अभी विचार नहीं किया गया, तो बिहार के विकास से जगमग होता बिहार भले ना दिखे जलती लाशों से बिहार में विनाश वाला उजाला हर कोई देखेगा और भोगेगा भी.