पटना: बिहार में एनआरसी और एनपीआर पर मचे घमासान पर बीजेपी ने बैकफुट पर जाना ही अपनी भलाई समझी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में एनआरसी और एनपीआर पर अपना रूख साफ किया तो बीजेपी भी धीरे से नीतीश की नीतियों की दीवार के पीछे चुपचाप हां में हां मिलकार शांत हो गयी. इसकी सबसे बड़ी बजह बिहार की वे 47 सीटें हैं जिनपर 20 से लेकर 40 प्रतिशत तक मुस्लिम वोटर हैं.
बिहार में बीजेपी मजबूर
बिहार में नीतीश कुमार एनडीए का चेहरा हैं और नीतीश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का फैसला पहले ही हो चुका है. ऐसे में बिहार फतह के लिए नीतीश की नीतियों को मानना बिहार में भाजपा की जरूरत भी है और मजबूरी भी. एनआरसी और एनपीआर पर अपने चहेते रणनीतिकार पीके के आरोपों को झेलने और पार्टी छोड़कर चले जाने के बाद भी नीतीश कुमार के चुप रहने के सियासी वजह को बीजेपी भी बखूबी समझ चुकी है.
बिहार में दबाव में है बीजेपी
यह नामुमकिन है कि बिहार में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में जाति के मुद्दे से सियासत अलग जाएगी. बिहार में विकास की सियासत चलती है, इसपर भले सवाल उठ जाय लेकिन बिहार में जाति की सियासत बिकती है इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है. राज्यों में कमजोर नीति और चेहरे के अभाव में लगातार सरकार गवाने के दबाव में आ चुकी भाजपा किसी भी सहयोगी के साथ विवाद का मुद्दा नहीं खड़ा करना चाह रही है. ऐसे में बिहार में इस बात को लेकर चर्चा जोरों पर थी की आखिर नीतीश के निर्णय पर भाजपा का रूख क्या होगा?
सीएम नीतीश कुमार (फाइल फोटो) नीतीश के विकास कार्यों के सहारे चल रही बीजेपी
बिहार में नीतीश कुमार के नाम पर बीजेपी अपनी सियासत को खड़ी करती रही है. नीतीश के विकास के एजेंडे को बीजेपी अपने काम में जोड़ लेती है. बिहार में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में एनआरसी और एनपीआर का मुद्दा पार्टी पर भारी न पड़ जाए इसलिए भी बीजेपी इस मामले पर चुप है. दरअसल बीजेपी के इस मुद्दे पर चुप रहने के एक नहीं कई कारण हैं.
उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी (फाइल फोटो) 47 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक
बिहार की 243 सीटों में से 47 सीट ऐसी है जिसपर निर्णायक वोटर की भुमिका में मुस्लिम हैं. इस में 47 सीटों पर मुस्लिम वोट का प्रतिशत 20 से लेकर 40 प्रतिशत तक है. बिहार में 2010 के चुनाव में जब बीजेपी और जदयू ने साथ चुनाव लड़ा था तो इन 47 में 25 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.
नीतीश पर है लोगों को विश्वास
यह माना जा रहा है कि इन सीटों पर जीत का मुख्य कारण नीतीश की विकास नीतियां रही हैं. लेकिन यह भी सही है कि जदयू के शासन काल में बिहार में दंगों का नहीं होना और नीतीश का लोगों में विश्वास होना बताया गया था. इसकी राजनीतिक पुष्ठि भी तब हुई जब 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ होने के बाद भी इसी क्षेत्र की सीटों पर बीजेपी ने सीटें जीती तो जरूर लेकिन वोट लगभग 5.83 प्रतिशत गिर गया.
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल (फाइल फोटो) विरोध-विवाद से बच रही बीजेपी
ऐसे में बीजेपी बिहार में चुनावी साल में किसी तरह का विरोध और विवाद अपने बीच नहीं चाह रही है. नीतीश के निर्णय पर बीजेपी का चुप रहना इसका हिस्सा है. वजह साफ है कि 7 राज्यों में सत्ता गवां चुकी बीजेपी अपने लिए बिहार को नहीं खोना चाहती है और यही बजह है कि बीजेपी ने नीतीश की नीतियेां को नैतिक समर्थन दे दिया है.