पटनाः सोमवार से बिहार विधान सभा (Bihar Legislative Assembly) के मॉनसून सत्र (Monsoon session) की शुरुआत हो रही है. हालांकि सत्र को लेकर बिहार की सियासत गरमाई हुई है. जिस तरीके से विपक्ष ने मुद्दा उठा रखा है, उससे सत्ता पक्ष बैकफुट पर ही नजर आ रही है. 23 मार्च 2021 को बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक को लेकर विपक्ष के हंगामे और मजबूर पुलिस का जो रंग सदन में दिखा था, वह शुरू हो रहे सदन पर कई सवाल खड़ा कर रहा है. जिस रंग में विपक्ष का तेवर है और सत्तापक्ष उसका जिस तरीके से उत्तर दे रहा है, कहीं एक और '23 मार्च' सदन के इतिहास में इन नेताओं की वीरगाथा की कहानी न लिख दे.
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बिहार विधानसभा में हुए हंगामे के बाद पुलिसिया कार्रवाई और विधायकों के साथ पुलिस की मारपीट को लेकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पहले भी सरकार पर हमलावर रहे हैं. तेजस्वी यादव ने कहा था, 1974 में समाजवादी सदस्यों ने विपक्ष की कुर्सी पर होने के बाद भी सदन की कार्रवाई चलाई थी. 1986 में जननायक कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में सदन में 3 दिनों तक धरना प्रदर्शन चला था. नीतीश कुमार उस समय सदन में हुआ करते थे. लेकिन 23 मार्च 2021 को जो हुआ, वह लोकतंत्र के इतिहास में किसी भी सदन के लिए काला अध्याय बन गया.
विधानसभा में हुई पुलिसिया कार्रवाई के बाद विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार ने वीडियो देख कर दो पुलिसकर्मियों को निलंबित करवा दिया. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या जितनी बड़ी कार्रवाई विधानसभा में हुई. जिस तरीके से विधायकों को बाहर निकाला गया. विपक्ष अब यह आरोप लगा रहा है कि उसके लिए सिर्फ दो पुलिसकर्मी ही दोषी होंगे. इसको विपक्ष मानने को तैयार नहीं है. सदन में यह सबसे बड़ा मुद्दा खड़ा है. इसे सिर्फ दो पुलिस वाले इतनी बड़ी कार्रवाई को अंजाम कैसे दे देंगे.
30 मार्च को बिहार विधानसभा में जो कुछ हुआ, उसके बाद विपक्ष के कई सवाल हैं. विधानसभा के मार्शल विधायकों को हटाने में फेल हो गए. सिर्फ बिहार पुलिस ही विधायकों को वहां से हटा पाई. सवाल यह उठ रहा है कि विधानसभा में मार्शल को रखा गया है. आखिर उनकी जरूरत ही क्या है? दो पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई कर विधानसभा अध्यक्ष ने विपक्ष को जो लॉलीपॉप दिखाया है, लगता नहीं है, उससे विपक्ष मानेगा.
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