पटना: चिराग पासवान (Chirag Paswan) और पशुपति पारस (Pashupati Paras) के बीच विवाद के चलते बिहार में दलित राजनीति (Dalit Politics) उलझ गई है. महागठबंधन की ओर से जहां चिराग को ऑफर मिल रहा है. वहीं, पारस की नजदीकियां जदयू से है. पूरे प्रकरण में भाजपा पशोपेश में दिख रही है.
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भंवर में दलित राजनीति
विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर बिहार का सियासी पारा चढ़ गया है. लोक जनशक्ति पार्टी (Lok Janshakti Party) दो फाड़ हो चुकी है. चिराग पासवान के नेतृत्व के खिलाफ पशुपति पारस की अगुवाई में 5 सांसदों ने बगावत कर दिया. गुरुवार को लोजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पशुपति पारस को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया. अब चिराग के अगले दांव का इंतजार है.
बिहार में 16 फीसदी है दलित वोट
बिहार में 16 फीसदी वोट दलितों का है. इसमें लगभग 6 फीसदी वोट पासवान जाति का है. पारंपरिक तौर पर लोजपा के साथ पासवान वोट बैंक माना जाता है. रामविलास पासवान के निधन और पार्टी में टूट के बाद अब पासवान किसके साथ जाएंगे यह बड़ा सवाल है? लोजपा में टूट से बिहार की दलित राजनीति उलझती दिख रही है.
वेट एंड वाच की स्थिति में है भाजपा
पशुपति पारस पर जदयू डोरे डाल रहा है. वहीं, चिराग पासवान को महागठबंधन की ओर से ऑफर मिल रहे हैं. इस मामले में भाजपा वेट एंड वाच की स्थिति में है. भाजपा नहीं चाहती कि लोजपा के किसी गुट की नजदीकी महागठबंधन से बढ़े. पार्टी दलित वोट बैंक में सेंधमारी का जोखिम उठाना नहीं चाहती. इसलिए बीजेपी चिराग पासवान और पशुपति पारस विवाद में फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है. भाजपा का मानना है कि लोजपा केंद्र में एनडीए का हिस्सा है.