पटना: बिहार में लालू प्रसाद यादव के गद्दी छिन जाने के बाद बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमारसे सामने अपराध और त्वरित न्याय एक बड़ी चुनौती थी. अपराधी अपराध करते थे लेकिन पकड़े जाने के बाद भी उन्हें सजा नहीं हो पाती थी. ऐसे में समाज में अपराध का बोलबाला था और इसी को मिटाने की चुनौती लेकर नीतीश कुमार बिहार की गद्दी सम्भाले थे. विषय गंभीर होने की वजह से बतौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उस समय के तत्कालीन डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा को एक योजना बनाने का निर्देश दिया. एआर सिन्हा और उस समय के तत्कालीन एडीजी कृष्णा चौधरी ने करीब तीस पेज की रिपोर्ट के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष उपस्थित हुए. इस खाका में काम कम और संसाधन की मांग ज्यादा थी.
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'अभयानंद मॉडल' से होगी 'अपराधबंदी' : मुख्यमंत्री ने पूरी बात सुनने के बाद उस समय के तत्कालीन एडीजी अभयानंद से फोन पर बात की. उस समय अभयानंद दिल्ली में थे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बुलावा पर सीधा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने मुख्यमंत्री आवास पहुँच गये. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभयानंद से एक ही सवाल किया 'किसी भी कीमत पर बिहार में कानून का राज स्थापित करने के लिए आप क्या कर सकते हैं' यदि कानून में बदलाव या संसाधन बढ़ाने की जरूरत भी है, तो सरकार तैयार है. इस पर अभयानंद के सधे हुए लहजे में जवाब दिया. न तो कानून बनाने की जरूरत है और न ही संसाधन बढ़ाने की. बस सरकार कानून का सही इस्तेमाल कर दें तो अपराध पर लगाम लग जाएगा.
नीतीश के निर्देश पर अभयानंद ने दिया मूल मंत्र: कानून का राज स्थापित करने की दिशा में दिसम्बर 2005 में पहली बार स्पीडी ट्रायल शब्द से बिहार पुलिस को पाला पड़ा और जनवरी 2006 में यह शब्द कानून का राज स्थापित करने वाला पुलिस का सबसे बड़ा हथकंडा बन गया. अभायानंद बिहार पुलिस में एडीजी मुख्यालय बने और बिहार पुलिस ने एक सूत्रीय अभियान चलाकर न केवल अपराधियों को गिरफ्तार करने लगी बल्कि उसका सही समय पर ट्रायल कराकर उन्हें सजा दिलाने लगी. आम तौर पर आपराधिक मामलों में 90 दिनों के भीतर चार्जशीट फाइल कर पुलिस का कोरम करने का प्रावधान है. लेकिन जैसे ही स्पीडी ट्रायल अभियान का दौर आया पुलिस अधिकारी दो से चार दिन में चार्जशीट फाइल करने लगे. इसका फायदा यह हुआ कि हर महीने काफी संख्या में अपराधियों को सजा होने लगी.
पुलिस अधिकारियों को बढ़ाया गया हौसला: बतौर एडीजी मुख्यालय अभयानंद (तत्कालीन) बिहार के तमाम जिलों के एसपी ही नहीं डीएसपी और थानेदारों को सीधा मॉनीटरिंग करने लगे. जो पुलिस पदाधिकारी इस काम को जल्दी करता था, उसे मुख्यालय से रिवार्ड भी मिलने लगा. इसका परिणाम यह हुआ कि देश में बिहार इकलौता राज्य बना जहां 7 दिनों में रेप के एक आरोपी को फांसी की सजा सुनायी गयी. यह मामला कटिहार के बरारी थाने के था, जहाँ तीन साल की बच्ची की रेप कर हत्या हुई थी. सात दिन में सजा कराने का श्रेय उस समय के तत्कालीन एसपी को गया था. उन्हें मुख्यालय से सम्मानित भी किया गया था. इसके अलावा दर्जनों ऐसे मामले यादगार बने जिसमें घटना के दसवें से 40वें दिन सजा हो गयी.