पटना: जदयू के बागी नेता उपेंद्र कुशवाहा फिलहाल बिहार की सियासत के केंद्र बिंदु हैं. कुशवाहा को लेकर नीतीश कुमार असमंजस की स्थिति में हैं. कुशवाहा की बयानबाजी ने जदयू नेताओं को मुश्किल में डाल रखा है. उपेंद्र कुशवाहा जदयू छोड़ने को तैयार नहीं हैं. वहीं सियासी गलियारे में इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि कुशवाहा अपनी पुरानी पार्टी रालोसपा को मजबूत (RLSP merged with JDU) करने की तैयारी में जुटे हैं. लेकिन, कुशवाहा की इस तैयारी को झटका लग सकता है.
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क्या है मामलाः उपेंद्र कुशवाहा के पूर्व सहयोगी और पार्टी के तत्कालीन महासचिव अरुण कुशवाहा ने उपेंद्र कुशवाहा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. जदयू में विलय के बाद अरुण कुशवाहा ने मार्च 2021 में ही उपेंद्र कुशवाहा को रालोसपा से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था और रालोसपा पर अपना दावा ठोक दिया था. मामला चुनाव आयोग में विचाराधीन है. 8 फरवरी को इस मामले पर सुनवाई हुई. अरुण कुशवाहा सुनवाई के दौरान आयोग के समक्ष पेश हुए.
क्या कहा चुनाव आयोग नेः ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत के दौरान अरुण कुशवाहा ने कहा है कि चुनाव आयोग द्वारा मुझे यह कहा गया है कि पार्टी का सांगठनिक चुनाव संपन्न कराइये, उसके बाद हम फैसला देंगे. अरुण कुशवाहा ने कहा कि जिस तरीके से समता पार्टी को कार्यकर्ताओं ने जीवित रखा और पार्टी का संचालन किया उसी तरीके से हमने भी रालोसपा को जीवित रखा. मेरे साथ बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं की फौज है. मैं पार्टी को चलाना चाहता हूं. चुनाव आयोग में मैंने आवेदन दे रखा है और इसकी कानूनी लड़ाई जारी रहेगी.
"चुनाव आयोग द्वारा मुझे यह कहा गया है कि पार्टी का सांगठनिक चुनाव संपन्न कराइये, उसके बाद हम फैसला देंगे. जिस तरीके से समता पार्टी को कार्यकर्ताओं ने जीवित रखा और पार्टी का संचालन किया उसी तरीके से हमने भी रालोसपा को जीवित रखा. मेरे साथ बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं हैं. मैं पार्टी को चलाना चाहता हूं"- अरुण कुशवाहा, रालोसपा नेता
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राजद और भाजपा की रायः राजद प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा है कि उपेंद्र कुशवाहा नए तरह की सियासत कर रहे हैं. उन्होंने अपनी पार्टी का विलय जदयू में कर लिया था और आजकल वह अलग एजेंडे पर काम कर रहे हैं. जनता के बीच ऐसे लोगों की विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है. वहीं भाजपा प्रवक्ता अरविंद सिंह ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा सही मुद्दा उठा रहे हैं. नीतीश कुमार के इशारे पर उनकी पार्टी पर दावा किया जा रहा है. नीतीश कुमार अगर वाकई अति पिछड़ों और दलितों के हिमायती हैं तो किसी अति पिछड़े को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर दिखाएं. तेजस्वी यादव को क्यों आगे कर रहे हैं.
रालोसपा का विलयः आपको बता दें कि मार्च 2021 में उपेंद्र कुशवाहा तीसरी बार नीतीश कुमार के खेमे में आए थे. उन्होंने अपनी पार्टी रालोसपा का विलय जदयू में करने का ऐलान किया था. नीतीश कुमार ने भी पूरे तामझाम के साथ उपेंद्र कुशवाहा को जदयू की सदस्यता दिलाई थी. विधान पार्षद बनाने के साथ-साथ पार्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष भी बनाया. लेकिन जैसे ही नीतीश कुमार ने अगला चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ने का ऐलान किया, वैसे ही उपेंद्र कुशवाहा नाराज हो गये.
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