कटिहार:बिहार के लिए बाढ़ अभिशाप कहा जाता है. जहां एक तरफ बाढ़ की विभीषिका आम लोगों के संकट को और बढ़ा रही है. अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हो रहा है. वहीं, आज हम आपको बिहार के एक ऐसे इलाके के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां बाढ़ लोगों के चेहरे पर मुस्कान लेकर आती है.
दरअसल, बाढ़ का पानी कटिहार के मनिहारी इलाके में नाव व्यारियों के लिए वरदान है. नाव बनाने के कारोबार मनिहारी गांव में कुटीर उद्योग की तरह फल-फूल रहा है. ईटीवी भारत संवाददाता ने जब नाव गांव के नाव कारोबारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि इलाके में हर साल बाढ़ आता है. अगर किसी साल बाढ़ नहीं आती है, तो उनके व्यापर पर इसका असर पड़ता है.
'निजी नाव के लिए आ रहे लगातार आर्डर'
नाव कारोबारी रामदेव शर्मा ने बताया कि गांव और इसके आसपास का इलाके बाढ़ प्रभावित क्षेत्र हैं. बाढ़ से जिले में लाखों का नुकासान होता है. लेकिन बाढ़ गांव के नाव कारोबारियों के चेहरे पर मुस्कान लाती है. हर साल बाढ़ के समय नावों की डिमांड बढ़ जाती हैं. वहीं, सीताराम ने बताया कि इस इलाके में छोटी नावें लगभग हर घर में तैयार की जाती है. एक नाव बंनाने में लगभग 4-5 दिन का समय लगता है.
नाव कारोबारियों ने बताया कि उनके यहां केवल आम लोग ही नाव खरीदने नहीं आते, बल्कि जिला प्रशासन के कई वरीय अधिकारी भी बाढ़ के समय आर्डर देते हैं. नाव कारीगर किशन शर्मा ने बताया कि वे बाढ़ के दौरान वे नाव बनाकर साल भर के रोजी-रोटी का इंतजाम कर लेते हैं. लगभग 4 महीने से अधिक काम मिल जाते हैं. बाकी के बचे 8 महीने वे कोई भी अन्य मजदूरी कर लेते हैं.
कुटीर उद्योग के रूप में फैल रहा कारोबार
गौरतलब है कि इन इलाके में लोग सालों से नाव बनाने का कारोबार करते आ रहे हैं. मानसून के साथ ही जिले में नाव का कारोबार रंग पकड़ने लगता है. जिले में बनने वाले नाव की मजबूती और डिजाइन के कारण बिहार के विभिन्न जिले से आर्डर आने लगते हैं. नाव कारोबारियों ने बताया कि वे नाव बनाना अपने पूर्वजों से सिखें हैं. मनिहारी इलाके के लगभग 20 घरों में फैला यह कारोबार लगभग 40 साल से चला आ रहा है. इलके के लोग हर साल लगभग 100 से अघिक नाव का निर्माण करते हैं.
गौरतलब है कि हर साल आने वाली बाढ़ में लोगों के सपने और घर दोनों ही डूब जाते हैं. नजीवन बुरी तरह प्रभावित होता है. सैंकड़ो लोगों और जीव-जंतुओं की डूबने से मौत हो जाती है. लाखों रुपये की संपत्ति का नुकसान होता है. इस वर्ष भी यही हुआ है. खुशहाली से जीवन व्यतीत करने वाले परिवार बिना छत के दर दर की ठोकरें खा रहे हैं और दो वक्त की रोटी के लिए परेशान हैं. लेकिन इन सब से इतर बिहार में ही कई ऐसे इलाके हैं जहां बाढ़ अभिशाप नहीं बल्कि वरदान के रूप में देखी जाती है.