नीतीश का छलका बीजेपी प्रेम तो याद आया पुराना ट्रैक रिकॉर्ड पटना: 'मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बीजेपी प्रेम' वाला बयान बिहार में सियासी हलचल मचा दी है. ऐसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उस बयान से यूटर्न भी ले लिया है. जदयू नेताओं की तरफ से लगातार सफाई दी जा रही है. लेकिन नीतीश कुमार का जो पुराना ट्रैक रिकार्ड रहा है, उसके कारण राजनीतिक विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है.
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नीतीश का यूटर्न पथ : इसके पीछे नीतीश के बयानों वाली 'यूटर्न की लंबी प्रथा' है. आपको याद होगा कि जब नीतीश कुमार 2014 में विधानसभा चुनाव जीतकर आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, तब उन्होंने बोला था कि ''मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन बीजेपी में कभी नहीं जाएंगे'' लेकिन वो बीजेपी में भी गए. उसके बाद फिर राजद के साथ वापस भी आ गए. नीतीश कुमार प्रेशर पॉलिटिक्स के भी माहिर हैं. इसलिए उनके बयान को प्रेशर पॉलिटिक्स के रूप में देखा जा रहा है.
बीजेपी के साथ पुराना याराना : नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ पुराना राजनीतिक रिश्ता रहा है. 1995-96 से ही नीतीश बीजेपी के साथ रहे हैं. समता पार्टी के समय से नीतीश-बीजेपी के साथ बिहार में काम करते रहे हैं. 1996 में जब केंद्र में सरकार बनी थी कुछ दिनों के लिए तो 6 मंत्रियों में से नीतीश कुमार एक मंत्री थे. बाद में केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी तो नीतीश कुमार रेल मंत्री, कृषि मंत्री जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेवारी मिली.
जब 2014 में बना ली महागठबंधन के साथ सरकार: इसी दौरान उनकी मुलाकात गुजरात के एक जनसभा में नेरेंद्र मोदी से होती है. नीतीश ऐसे पहले शख्स थे जो गैर बीजेपी के होते हुए भी नरेंद्र मोदी को गुजरात से निकाल कर देश सेवा करने का आग्रह किया था. लेकिन वही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया और 2014 में महागठबंधन के साथ सरकार बना ली.
अटल वाजपेयी नीतीश की जुबान पर : 2005 में बिहार में लालू प्रसाद यादव को सत्ता से बाहर करने में बीजेपी के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भाजपा-जदयू गठबंधन ने बिहार में 1999 के आम चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया. साल 2000 में पहली बार नीतीश कुमार एक सप्ताह के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन वे बहुमत हासिल करने में विफल रहे और वाजपेयी की सरकार में केंद्र में मंत्री के रूप में लौटे.
कभी नरेंद्र मोदी का नाम उछाला आज उन्हीं से नफरत : पांच साल बाद, जदयू और भाजपा दोनों ने फरवरी 2005 में विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन सरकार अधिक समय तक नहीं चली और एक बार फिर अक्टूबर, 2005 में विधानसभा चुनाव हुए और नीतीश सत्ता में लौट आए. 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन ने भारी जीत हासिल की थी. यह वही साल था जब नीतीश पहली बार भाजपा से नाराज हुए थे, जब विज्ञापनों की एक श्रृंखला प्रकाशित हुई थी. जिसमें गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2010 में कोसी बाढ़ राहत के लिए नीतीश को 5 करोड़ रुपये के चेक की पेशकश की थी.
नीतीश की नाराजगी के कारण : उसी विज्ञापन से नाराज नीतीश ने 5 करोड़ रुपये के चेक को अस्वीकार कर दिया था और भाजपा नेताओं को रात्रिभोज भी रद्द कर दिया था. 2012-13 में यह मनमुटाव खुलकर बाहर आने लगा. जदयू ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में एक प्रस्ताव पारित करते हुए कहा कि एनडीए के प्रधानमंत्री उम्मीदवार सेक्युलर छवि का होनी चाहिए. मोदी को भाजपा की चुनाव समिति का प्रमुख बनाए जाने पर जदयू ने नाराजगी जताई थी. उस समय शरद यादव नीतीश के साथ जदयू का नेतृत्व कर रहे थे और जून 2013 में नीतीश ने बीजेपी के साथ 17 साल पुराने संबंध को समाप्त करते हुए भाजपा के साथ गठबंधन से बाहर हो गए थे.
'मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन.. ?' : इस दौरान नीतीश कुमार ने बड़ा बयान दिया था की मिट्टी में मिल जाएंगे लेकिन अब बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे. लेकिन उस बयान के बाद नीतीश कुमार यू टर्न भी लिए 2015 में नीतीश कुमार ने राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जुलाई 2017 में अचानक नीतीश गठबंधन से बाहर हो गए. बीजेपी के साथ फिर से सरकार बना ली. 2017 में फिर भाजपा के साथ सरकार बना लिए. एनडीए की सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार ने कहा था कि लालू के साथ हम नहीं जाएंगे, लेकिन 8 अगस्त 2022 को एक बार फिर से नीतीश-लालू के साथ चले गए और आज लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के साथ महागठबंधन की सरकार चला रहे हैं. इंडिया गठबंधन के सूत्रधार भी हैं.
बीजेपी के लिए छलकता नीतीश प्रेम: नीतीश कुमार का बीजेपी प्रेम हमेशा छलकता रहा है. अटल बिहारी वाजपेई की नाम तो हमेशा लेते रहते हैं, उनका गुणगान करते रहते हैं. जब एनडीए में थे तो नरेंद्र मोदी की भी तारीफ करते थे, लेकिन एक बार फिर से नीतीश कुमार के एनडीए से बाहर निकलने के बाद लगातार प्रधानमंत्री के खिलाफ बयान देते रहे हैं. हाल ही में राष्ट्रपति द्वारा दिए गए G20 के भोज में जिस प्रकार गर्म जोशी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात की है, उसके बाद से ही कई तरह की चर्चा शुरू है.
मोतिहारी में नीतीश का दिखा पुराना याराना?: गुरुवार को मोतिहारी केंद्रीय विश्वविद्यालय में राष्ट्रपति की मौजूदगी में जिस प्रकार से बीजेपी के साथ प्रेम वाला बयान दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की है और मनमोहन सिंह को लेकर जो बयान दिया है, उसके कारण कई तरह की चर्चाएं शुरू हैं. नीतीश कुमार ने ऐसे तो सफाई भी दी है और एक तरह से अपने बयान से यू टर्न ले लिया है. जदयू के नेता भी नीतीश कुमार के बयान पर सफाई दे रहे हैं. लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण पांडे का कहना है कि,''नीतीश कुमार का जो ट्रैक रिकॉर्ड है, उसके कारण ही इस तरह की राजनीतिक चर्चा हो रही है.''
क्या कहते हैं पक्ष विपक्ष? : भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल का कहना है कि''नीतीश कुमार को भाजपा ने जितना सम्मान दिया है वह तो उन्हें कचोटा ही होगा.''जदयू नेताओं की तरफ से राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह, वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी, भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने नीतीश कुमार के बयान के बाद ही सफाई दे दी. जदयू मंत्री अशोक चौधरी का कहना है कि ''नीतीश कुमार के लिए कोई दरवाजा बंद नहीं होता है. सभी पार्टी उन्हें लेने के लिए तैयार रहते हैं, क्योंकि बिहार को बीमारू राज्य से नीतीश कुमार ने ही बाहर निकाला है. गुजरात और आंध्र प्रदेश के बाद सबसे तेज से विकसित करने वाला बिहार राज्य है. उसके नेता कौन है नीतीश कुमार.''
कयास का आधार नीतीश का सियासी ट्रेंड: बिहार में नीतीश कुमार जिस गठबंधन के साथ रहे हैं उसी की सरकार बनती रही है. लोकसभा चुनाव में भी उसी गठबंधन का प्रदर्शन शानदार रहा है. हालांकि लालू प्रसाद यादव के साथ नीतीश कुमार अब तक लोकसभा का चुनाव नहीं लड़े हैं. अब लोकसभा चुनाव 2024 नजदीक में है, ऐसे में नीतीश कुमार के बयान को लेकर कई तरह के कयास लगना स्वाभाविक है. हालांकि नीतीश कुमार ने फिलहाल यू टर्न भी ले लिया है. लेकिन इसके बावजूद अपने सहयोगी दलों के बीच भी नीतीश कुमार ने एक संशय की स्थिति बना दिया है.