पटना: बिहार की सत्ता संभाल चुके कई मुख्यमंत्री अपनी भिन्न कार्यशैली के लिए अलग पहचान के साथ उभरे. इन्हीं मुख्यमंत्रियों की फेहरिस्त में एक नाम बिहार के पहले सीएम श्रीकृष्ण सिंह उर्फ श्रीबाबू का है. जिन्होंने लंबे समय तक सूबे पर राज किया. खास बात ये हैं कि अपने कामों से जनता को प्रभावित करने वाले इस सीएम ने कभी अपने लिए वोट नहीं मांगा. बावजूद इसके, वो आखिरी सांस तक वो अपने दौर के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता रहे.
श्रीकृष्ण सिंह 1946 से लेकर 1961 तक बिहार के सीएम रहे. उनके शासन काल के दौरान राज्य में पहली बार औद्योगिक क्रांति आई थी. श्रीबाबू को आधुनिक बिहार का शिल्पकार कहा जाता है. चुनाव के समय वो अपनी ही विधानसभा क्षेत्र में खुद के लिए वोट मांगने नहीं गए. उनका सिद्धांत था कि यदि मैंने काम किया है, तो जनता बिना मांगे मुझे वोट देगी.
क्यों नहीं करते थे प्रचार
1957 में हुए विधानसभा चुनाव में श्रीबाबू ने शेखपुरा जिले के बरबीघा से चुनाव लड़ा. इस दौरान प्रचार के लिए सहयोगी सक्रिय रहे. लेकिन सूबे के पहले सीएम प्रचार प्रसार में शामिल नहीं हुए. इसपर जब कार्यकर्ताओं ने पूछा कि आप वोट मांगने नहीं जाएंगे. तब श्री बाबू ने कहा कि अगर मैंने काम किया है या जनता मुझे अपना नेता मानती है, तो वो मुझे खुद से वोट देगी.
मेरे गांव में, मैं हूं सुरक्षित
जमीनी नेता रहे श्रीबाबू सीएम रहते हुए जब अपने गांव आते थे, तो वो सुरक्षाकर्मियों को गांव के बाहर ही रोक देते थे. वो कहते थे, 'ये मेरा गांव है, यहां मुझे कोई खतरा नहीं है.'लोगों की मानें, तो श्रीबाबू एकदम देसी अंदाज में रहते थे. लोगों को कभी लगता ही नहीं था कि उनके बीच बिहार का सीएम है.
'बिहार केसरी' श्रीबाबू
बिहार के नवादा जिले स्थित खनवां गांव में जन्में श्रीकृष्ण सिंह को बिहार केसरी के नाम से जाना जाता है. उन्होंने कभी भी अपने उसूलों से कोई समझौता नहीं किया. बिहार में जमींदारी प्रथा को खत्म करने का पूरा श्रेय उन्हीं को जाता है. वो आम लोगों के ज्यादा करीब रहते थे. यही कारण है कि लोगों में उनकी लोकप्रियता भी ज्यादा थी.