नवादा: लोक आस्था का पर्व छठ की तैयारी जोरों पर है. छठ को आस्था का महापर्व कहा जाता है. यही वजह है कि कोरोना काल होने के बावजूद लोगों में उत्साह चरम पर है. लोग छठ के लिए उपयोग में आने वाले बांस के बने सामान, सूप, दउरा, डाला आदि की खरीददारी कर रहे हैं. क्योंकि छठ में बांस के बने सामानों का एक अलग ही महत्व है
बदहाल है बांस कारीगरों का जीवन
छठ महापर्व आते ही बांस की कमाची को विभिन्न आकार प्रदान करने वाले लोगों को आज भी सामाजिक वजूद नहीं मिल पाया है. भले ही धार्मिक उत्सवों, पर्व-त्योहार, शादी-विवाह के मौके पर इनकी ओर से निर्मित वस्तु पवित्र मानी जाए, लेकिन इसे बनाने वाले समुदाय को पहचान नहीं मिल पाई है.
नहीं जाती किसी की नजर
दरअसल, हम बात कर रहे हैं जिले गोविन्दपुर प्रखंड के एकतारा गांव के महादलित बस्ती के लोगों के बारे में जिनके बनाएं बांस के दउरा, डाला, सूप से लोग अपनी मन्नते पूरी तो कर लेते हैं, लेकिन इनकी दिन पर दिन माली हालत खराब होती जा रही है. इनकी हालत पर किसी की नज़र नहीं जाती.
'हमारा पुश्तैनी धंधा है'
छठ को आस्था का महापर्व कहा जाता है. इस महापर्व पर बांस से बने सामानों का विशेष महत्व है. पूजा में इस्तेमाल किए जाने वाले सामानों में सूप, डाला, डगड़ा और दउरा का खास महत्व होता है. सबसे खास बात यह है कि भगवान भास्कर को जिस सूप में प्रसाद अर्पित किया जाता है उसे समाज के सबसे अत्यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं. ऐसे में जिले के गोविन्दपुर प्रखंड के एकतारा गांव में जब सूप और दौरा बनाने वाले लोगों के हालात का जायजा ईटीवी भारत की टीम ने लिया तो इस काम में लगे लोगों ने बताया कि यह हमारा पुश्तैनी धंधा है. इस काम के अलावे हमें कोई अन्य काम नहीं आता है. इसी काम के सहारे हमारे साल भर के रोजी-रोटी का जुगाड़ होता है.