नालंदा: दिवाली आते ही दीपों का कोराबार शुरू हो गया है. मिट्टी के दीये के साथ-साथ मिट्टी के बर्तनों का निर्माण कार्य में तेजी हो गया है. लेकिन, कुम्हारों के मुताबिक दीयों की बिक्री सिर्फ दिपावली में होती है. जिससे कुम्हार परेशान हैं. उनका कहना है कि बेहतर जिन्दगी के लिए वह सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं.
कुम्हारों का कहना है कि दिपावली में मिट्टी के दीये, बर्तन, प्याली और कुछ खिलौने बनते हैं. लेकिन, इसकी बिक्री कम हो गई है. उन्होंने कहा कि लोग अब दीये की जगह मोमबत्ती जलाना पसंद कर रहे हैं. इस कारण उनको उचित लाभ नहीं मिल पाता है.
क्या कहते हैं कुम्हार?
कुम्हारों ने कहा कि मिट्टी की कीमत बढ़ गई है. जहां पहले 800 रुपया ट्रैक्टर मिट्टी मिलता था, अब 1300 रुपया ट्रैक्टर हो गया है. उन्होंने बढ़ती महंगाई को लेकर भी कहा कि महंगाई के बढ़ने के बावजूद दीयों की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं हुई. हालांकि, कुम्हारों का यह भी कहना है कि प्लास्टिक के बैन होने से मिट्टी के बर्तन में बढ़ोतरी हो सकती है.
'सरकार से नहीं मिली सहायता'
कुम्हारों ने बताया कि सरकार की तरफ से किसी प्रकार की सहायता नहीं मिल रही है. उन्होंने कहा कि सरकार से अनुदान भी नहीं मिल रहा है जिससे अपना जीवन यापन सुधार सके. उनका यह भी कहना है कि जगह की कमी होने के कारण वह अपना व्यपार भी नहीं बढ़ा पा रहे हैं.