नालंदा:जिले की बेटी मिताली प्रसाद ने अमेरिका की सबसे ऊंची पर्वत की चोटी अकोंकागुआ पर तिरंगा लहराकर कीर्तिमान स्थापित किया है. मिताली की इस उपलब्धि से पूरा जिला और राज्य गौरवान्वित महसूस कर रहा है. मिताली कराटे में ब्लैक बेल्ट होल्डर हैं. उनका सपना संसार के सात ऊंचे पर्वतों पर चढ़ाई करने का है, जिसमें से वह चार पर्वतों पर चढ़ाई कर चुकी हैं.
अकोंकागुआ पर्वत पर मिताली प्रसाद
श्रृंखलाबद्ध सफलता की चोटी पर चढ़ रही ये बेटी
कहते हैं कामयाबी कभी स्त्री या पुरुष में भेद नहीं करती, बल्कि उन्हीं के कदम चूमती है जो आकाश को छूने का हौसला रखते हों. यह सत्य कथन मिताली के जीवन में चरितार्थ होता नजर आ रहा है. बेहद मामूली परिवार से निकली मिताली प्रसाद ने एक नहीं बल्कि टाईगर हिल्स और कंचनजंगा जैसे कई आसमान छूते पर्वतों तक अपने कदमों को पहुंचाया है. अब वह सफलता की श्रृंखलाबद्ध चोटी पर चढ़ते हुए देश की सीमाओं के पार उड़ान भर रही हैं.
बाधाओं को चीर आकाश को छू रही मिताली
मिताली प्रसाद नालंदा जिले के कतरीसराय प्रखंड के मायापुर की रहने वाली हैं. उनकी प्रारंभिक पढ़ाई भी यहीं हुई. 2008 में किसी तरह पैसों की व्यवस्था कर उनके पिता ने बेहतर शिक्षा के लिए पटना भेजा. उनके पिता एक किसान हैं. वह एक ऐसे परिवार से आती हैं जहां आठ लड़कियां हैं. इस घर में दो लड़के भी हैं. जाहिर है एक मध्यम वर्गीय परिवार में दस बच्चों का भरण-पोषण और शिक्षा किसी चुनौती से कम नहीं है. इन सभी बाधाओं को चीरते हुए मिताली भारत वर्ष का नाम विश्वपटल पर एक बार फिर से चमकाने की चाह रखती हैं.
गांंव में मिताली प्रसाद का परिवार अमरीका की सबसे ऊंची चोटी पर लहराया तिरंगा
मिताली अपनी इस महत्वकांक्षा को उड़ान देने के लिए कई पर्वतों को लांघते हुए अमरीका जा पहुंची हैं. उन्होंने साउथ अमरीका की चोटी अकोंकागुआ पर चढ़ तिरंगा फहराकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया है. इस सफलता से उनके घर वाले फूले नहीं समा रहे. वहीं गांव में भी गर्व और खुशी की लहर है. उनके घर वाले अन्य लोगों को संदेश दे रहे हैं कि घर में बेटी के जन्म लेने पर दुखी न हों बल्कि सुनिश्चित करें कि उन्हें बेहतर संस्कार दिए जाएं, क्योंकि उपलब्धियां किसी में भेदभाव नहीं करतीं.
'म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के?'
मिताली के पिता मनिंदर प्रसाद कहते हैं कि उनकी बेटी देश की अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा बनेगी. उन्होंने कहा कि आमिर खान की एक फिल्म में कहा गया था कि 'म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के?' मैं यही समझता हूं कि मेरी बेटियां किसी से कम नहीं हैं. वहीं मिताली के चाचा कवींद्र प्रसाद ने कहा कि मिताली के मन में देश के लिए कुछ करने की चाह है. वह राष्ट्र का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोशन करना चाहती है. इन सबके इतर लाठी के सहारे जमीन पर पांव रखने वाली बूढ़ी दादी भी अपनी पोती की सफलता से फूली नहीं समा रही हैं.
सरकार से गुहार, कचरे में पड़ी रहीं अर्जियां
खुशी के इस माहौल में एक निराश कर देने वाली तस्वीर भी सामने आई जो इनके चेहरे की चमक पर परेशानी की लकीरें भी खींच देती. इन सभी का कहना है कि मिताली की इस यात्रा में सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं दी गई. सांसद, मंत्री, राज्य और केंद्र सरकार तक आर्थिक मदद की गुहार लगाई लेकिन किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगा. आवेदनों को कचरे के डिब्बे में डाल दिया गया. अब जब मिताली ने इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है तब भी कोई सरकारी नुमांइदा हौसला आफजाई करने भी नहीं आया.
पप्पू यादव ने बढ़ाए मदद के हाथ
उनके घर वालों ने बताया कि मिताली की सफलता में उसके कॉलेज ने पूरा समर्थन दिया. लोगों से पैसे जुटाकर वह अमरीका तक पहुंच पाई. उनके पिता ने बताया कि जब कोई नहीं सुन रहा था तब पूर्व सांसद पप्पू यादव मदद के लिए आगे आए. उन्होंने हमारी बहुत सहायता की. इसके लिए परिवार वालों ने पप्पू यादव को धन्यवाद कहा. उन्होंने कहा कि हमें गुमान है कि हमारी बेटी बिना सरकारी मदद के वहां तक पहुंच पाई. मिताली ने अंकोकागुआ पर्वत पर चढ़ने वाली भारत की पहली महिला होने का गौरव प्राप्त किया.
अमरीका के अकोंकागुआ की खासियत
बता दें कि अकोंकागुआ या आकोंकाग्वा दक्षिण अमरीका की ऐन्डीज पर्वतमाला का सबसे ऊंचा पहाड़ है. यह एशिया से बाहर विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत भी है, हालांकि एशिया के हिमालय इतने ऊंचे हैं कि अकोंकागुआ का स्थान केवल विश्व के 110वें सबसे ऊंचे पर्वत पर आता है. अकोंकागुआ चिली और अर्जेंटीना देशों की सरहद पर स्थित है, हालांकि इसका शिखर अर्जेंटीना की भूमि पर पड़ता है.