नालंदा: भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है. यहां अलग-अलग सभ्यता, धर्म और संस्कृति से जुड़े लोग रहते हैं. इसी कारण यहां सालों भर विभिन्न तरह के त्योहार मनाए जाते हैं. छठ संपन्न होने के बाद लोग आज अक्षय नवमी का त्योहार मना रहे है. इस दौरान जिले के विभिन्न मंदिरों में अहले सुबह से ही महिलाओं की भीड़ उमड़नी शुरू हो गई थी.
आंवला के पेड़ की पूजा करती महिलाएं आंवला पेड़ के नीचे बैठकर महिलाओं ने किया भोजन
पूजा-अर्चना के बाद महिलाओं ने आंवला पेड़ के नीचे भुआ दान का दान किया. जिसके बाद महिलाओं ने एक समूह में बैठकर आंवला पेड़ के नीचे भोजन ग्रहण किया. इस बाबत पूजा कर रही एक महिला उर्मिला देवी बताती है कि आज के दिन आंवला पेड़ के नीचे पूजा और दान करने से घर में हमेशा सुख शांती बनी रहती है.
अक्षय नवमी पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है
बताया जाता है कि इस पर्व को कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है. इसे आंवला नवमी भी कहा जाता है. धर्म के जानकारों का कहना है कि इसी दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था. कई लोगों का मानना है कि इसी दिन माता लक्ष्मी ने पृथ्वी लोक में भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा आंवले स्वरूप को मानकर की थी. इसलिए इस दिन आंवला के पेड़ के नीचे बैठकर पूजन करने से संतान की प्राप्ति और घर में सदा सुख शांती बनी रहती है.
भूआ का दान करती हुई महिलाएं अक्षय नवमी की पौराणिक कथा
दंतकथाओं के माने तो काशी नगर में एक वैश्य रहता था. जिसे कोई संतान नही था. संतान के लालच में उसकी पत्नी ने एक कन्या को कुएं में गिराकर बली चढ़ा दी. जिसके बाद उसके पूरे शरीर में कोढ़ हो गया और उस लड़की की आत्मा उसे परेशान करने लगी. जब वैश्य को इस बात का पता चला तो उसने उसे गंगा पूजन कर इस पाप से मुक्ति का मार्ग बतलाया. जिसके बाद वैश्य की पत्नी को गंगा मैया ने दर्शन देकर आंवले के पेड़ की पूजन करने की सलाह दी. जिसके बाद महिला ने आंवले के पेड़ का पूजन और व्रत कर इस पाप से मुक्त हुई और उसे एक संतान की प्राप्ति हुई.
वहीं कुछ अन्य दंतकथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक नामक दानव को मारा था. साथ ही इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वनों की परिक्रमा की थी. जिस वजह से आज भी लाखों भक्त इस दिन मथुरा-वृदांवन की परिक्रमा करते है.