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ऐतिहासिक कारगिल युद्ध के 21 साल: क्या हम भूल गए शहीद के परिवारों से किए हुए वादे?

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Published : Jul 26, 2020, 6:09 AM IST

कारगिल की जंग में बिहार के 18 सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. लेकिन उनके परिजन आज भी सरकार की उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं.

muzaffarpur
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मुजफ्फरपुरः कारगिल की लड़ाई में पाकिस्तानी घुसपैठ से अपने अदम्य साहस के बल पर लड़ने वाले शूरवीरों में बिहार के कई सपूत भी शामिल थे. जिन्होंने मां भारती के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देकर अपनी मातृभूमि की रक्षा का फर्ज अदा किया. ऑपरेशन विजय के तहत 60 दिनों तक चली जंग में बिहार रेजिमेंट के सैनिकों ने भी दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे.

निभाई थी अहम भूमिका
आज से ठीक 21 साल पहले 26 जुलाई को कारगिल फतह कर सैनिकों ने तिरंगा लहराया था. कारगिल युद्ध में बिहार में पले-बढ़े 18 वीर जवानों ने सर्वोच्च बलिदान देकर अहम भूमिका निभाई थी. इन महावीर योद्धाओं में एक नाम मुजफ्फरपुर के मड़वन प्रखंड के फंदा निवासी नायक सुनील कुमार का भी है. जिन्होंने कारगिल विजय में अहम भूमिका निभाई थी.

शहीद सुनील कुमार

विजय के 3 दिन पहले हुए शहीद
जवान सुनील कुमार का जन्म 15 मार्च 1969 को हुआ था. उन्होंने एक पारा कमांडो के तौर पर अपनी यूनिट के साथ कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लिया था. कारगिल विजय से ठीक 3 दिन पहले 23 जुलाई 1999 को सुनील कुमार शहीद हो गए थे.

देखें रिपोर्ट.

बेटे की शहादत पर पिता को है गर्व
शहीद सुनील कुमार के पिता गणेश प्रसाद सिंह की आंखें ये बताते हुए नम हो जाती हैं कि उनका बेटा देश के लिए शहीद हो गया और उन्हें इस बात पर गर्व है. उन्होंने बताया कि उन्हें हमेशा अपने बेटे की कमी खलती है. सुनील कुमार के जाने के बाद से उनका पूरा घर बर्बाद हो गया. उनके परिवार की खुशियों को नजर लग गई.

शहीद सुनील कुमार के पिता गणेश प्रसाद सिंह

वृद्ध माता-पिता की उपेक्षा
गणेश प्रसाद सिंह ने बताया कि सरकार की कुछ गलत नीतियों की वजह से सभी को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि सरकार शहीद के परिवार का तो ध्यान रखती है. लेकिन उनके वृद्ध माता-पिता को उपेक्षित कर दिया जाता है.

शहीद सुनील कुमार की समाधि

पूरा नहीं किया गया वादा
शहीद के पिता ने कहा कि सरकार ने जो शहीदों के परिवार से वादा किया था वह आज तक पूरा नहीं किया गया है. साथ ही शहादत दिवस के मौके पर भी शहीद के समाधि पर कोई सरकारी अधिकारी या जनप्रतिनिधि नहीं आते हैं. देश की रक्षा करते जांबाज जवान अपने प्राणों का बलिदान दे देते हैं. ऐसे में सरकार तमाम वादे तो करती है. लेकिन उन्हें पूरा करने में वो ऊर्जा नहीं दिखाती, जो शहीद जवानों के परिजनों को थोड़ी राहत दे सकें.

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