मुजफ्फरपुर: देश-दुनिया में चर्चित बिहार के मुजफ्फरपुर की रसभरी लीची इस साल अफवाहों की भेंट चढ़ गई. राज्य के उत्तरी हिस्से में एक्यूट इंसेफलाइटिस बीमारी (एईएस) के लिए लीची को जिम्मेदार बताए जाने के बाद इस साल जहां मीठी लीची 'कड़वाहट' का शिकार हुई, वहीं लीची किसान और व्यापारियों को भी लीची के कारोबार में नुकसान उठाना पड़ा है.
बिहार के मुजफ्फरपुर और इसके आसपास के जिलों में एईएस या चमकी बुखार से अबतक 180 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. एईएस के लिए कई लोग लीची को जिम्मेदार बता रहे हैं. हालांकि मुजफ्फरपुर के चिकित्सक और राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र इसे सही नहीं मानता है.
मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक विशाल नाथ कहते हैं कि लीची पूरे देश और दुनिया में सैकड़ों सालों से खाई जा रही है. लेकिन यह बीमारी कुछ सालों से मुजफ्फरपुर में बच्चों में हो रही है। इस बीमारी को लीची से जोड़ना झूठा और भ्रामक है. ऐसा कोई तथ्य, कोई शोध सामने नहीं आया है, जिससे यह साबित हुआ हो कि लीची इस बीमारी के लिए जिम्मेदार है. लेकिन इस भ्रामक खबर ने लीची व्यापारियों की कमर तोड़ दी है. लीची के बड़े व्यवसायी और 'लीचीका इंटरनेशनल प्राइवेट कंपनी' के मालिक क़े पी़ ठाकुर ने आईएएनएस को बताया कि इस साल एईएस के डर ने थोक विक्रेताओं को अपनी मांग में कटौती के लिए मजबूर किया है. उन्होंने हालांकि कहा कि एईएस का प्रभाव सीजन के अंत में हुआ, जिस कारण नुकसान थोड़ा कम हुआ.
बिहार लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह इस अफवाह को लीची व्यापारियों के लिए बड़ा घाटा बताते हैं. उन्होंने कहा, 'पिछले साल भारत सरकार के बौद्घिक संपदा विभाग द्वारा शाही लीची को बिहार का पेटेंट माना गया है. इस साल कुछ नेताओं और पत्रकारों ने एईएस के नाम पर लीची को बदनाम किया है.' उन्होंने कहा, 'बिहार में 32 हजार हेक्टेयर जमीन पर लीची के पेड़ लगे हैं. इस व्यवसाय से करीब एक लाख लोग जुड़े हुए हैं. यहां से 200 करोड़ रुपये का व्यापार होता था, परंतु अफवाह की वजह से लीची कारोबार से जुड़े लोगों को करीब 100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.'
लीची के कुछ व्यापारी तो इसे एक साजिश तक बता रहे हैं. लीची के बड़े उत्पादक और बिहार सरकार द्वारा 'किसान भूषण' सम्मान से सम्मानित एस़ क़े दूबे ने कहा कि देश के दक्षिणी हिस्से में इस मौसम में आम का उत्पादन होता है, जिसका स्वाद बिहार की लीची के मुकाबले खराब है. उन्होंने दावा किया, 'हाल के कुछ वर्षो में दक्षिण भारत में बिहार की शाही लीची की मांग बढ़ी है. यही कारण है कि आम उत्पादकों ने लीची को बदनाम करने की ऐसी साजिश रची है.'