मुंगेर:लोक आस्था का महापर्व छठ व्रत (Chhath Festival Of Folk Faith) उत्तर भारतीयों के लिए सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. जिसके कारण इसे लोक आस्था का महापर्व (Chhath Puja) कहा जाता है. छठ व्रत के साथ मुंगेर गंगा नदी के बीचों-बीच स्थित सीता चरण मंदिर (Sita Charan Temple In Munger) की महत्ता जुड़ी हुई है. धार्मिंक मान्यताओं के अनुसार, रामायण काल में माता सीता ने पहली बार छठ व्रत बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर किया था. इसके प्रमाण स्वरूप आज भी यहां माता सीता के अस्तचलगामी सूर्य और उदयमान सूर्य को अर्घ्य देते चरण चिह्न मौजूद हैं. माता सीता के चरण पर कई वर्षों से शोध कर रहे शहर के प्रसिद्ध पंडित कौशल किशोर पाठक बताते हैं कि आनंद रामायण के पृष्ठ संख्या 33 से 36 तक सीता चरण और मुंगेर के बारे में उल्लेख किया गया है.
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मुंगेर में पहली बार माता सीता ने की थी छठ महापर्व :आनंद रामायण के अनुसार मुंगेर जिला के बबुआ घाट से 3 किलोमीटर दूर गंगा नदी के बीचों-बीच में एक पर्वत है. इसी पर्वत पर ऋषि मुद्गल का आश्रम स्तिथ है. इसी आश्रम में माता सीता ने पहली बार छठ व्रत किया था. यह स्थान वर्तमान में सीता चरण मंदिर के नाम से जाना जाता है. जो आज भी माता सीता के छठ पर्व की कहानी को याद दिलाता है. वहीं, दूसरी ओर हिंदू मान्यताओं के अनुसार वनवास पूरा करने के बाद जब प्रभु श्री राम अयोध्या वापस लौटे तो उन्होंने राम राज्य के लिए राजसूर्य यज्ञ करने का निर्णय लिया. यज्ञ शुरू करने से पहले उन्हें वाल्मीकि ऋषि ने कहा कि मुद्गल ऋषि के आये बिना यह राजसूर्य यज्ञ सफल नहीं हो सकता है. इसके बाद ही श्री राम सीता माता सहित मुद्गल ऋषि के आश्रम पहुंचे थे.
माता सीता ने मुद्गल ऋषि के आश्रम किया था निवास :मुद्गल ऋषि ने ही माता सीता को छठ व्रत करने की बात कही थी. इधर आनंद रामायण के अनुसार प्रभु श्री राम द्वारा रावण का वध किया गया था. जैसा कि हम जानते है रावण एक ब्रह्मण था, इसलिए श्री राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था. इस ब्रह्म हत्या से पापमुक्ति के लिए अयोध्या के कुलगुरु मुनि वशिष्ठ ने मुगदलपुरी (वर्तमान में मुंगेर) में ऋषि मुद्गल के पास श्री राम और माता सीता को भेजा था. भगवान श्री राम को ऋषि मुद्गल ने वर्तमान कष्टहरणी घाट में ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ करवाया और माता सीता को अपने आश्रम में ही रहने का आदेश दिया था. मान्यता थी कि महिलाएं यज्ञ में भाग नहीं ले सकती. इसलिए माता सीता ने ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहकर ही उनके आदेश का पालन करते हुए छठ व्रत किया. सूर्य उपासना के दौरान माता सीता ने अस्ताचलगामी सूर्य को पश्चिम दिशा की ओर और उदीयमान सूर्य को पूरब दिशा की ओर अर्घ्य अर्पित किया था.
मंदिर के गर्भ गृह में माता सीता के पैरों के निशान मौजूद हैं :आज भी मंदिर के गर्भ गृह में पश्चिम और पूरब दिशा की ओर माता सीता के पैरों के निशान मौजूद हैं. इस मंदिर का गर्भ गृह साल के 6 महीने गंगा के गर्भ में समाया रहता है. जबकि गंगा का जल स्तर घटने पर 6 महीने ऊपर रहता है. और भक्तगणों द्वारा माता सीता के चरण की पूजा अर्चना की जाती है. ऐसा माना जाता है कि मंदिर के प्रांगण में छठ करने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. वहीं, दूसरी तरफ स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर राज्य और केंद्र सरकार माता सीता चरण मंदिर के ओर ध्यान दे तो यह स्थान पर्यटक का बड़ा केंद्र बन सकता है.