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अनोखा है भगवान भोलेनाथ का यह मंदिर, भक्तों की हर मनोकामना होती है पूर्ण - मंदिर की पौराणिक कथा

इस मंदिर के प्रंगण में शिक्षा के 3 बड़े माध्यम अवस्थित है. मंदिर परिसर में प्राथमिक विद्यालय, मध्य विद्यालय, उच्च विद्यालय के साथ संस्कृत महाविद्यालय स्थापित हैं. मंदिर परिसर में एक तलाब भी स्थापित है. स्थानीय बताते है कि तालाब की खुदाई किसने करवाई इस बात का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं

भगवान भोलेनाथ का यह मंदिर

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Published : Nov 14, 2019, 12:52 PM IST

मधुबनी: जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर अंधराठाढ़ी प्रखंड के मदना गांव में अवस्थित मदनेस्वर अंकुरित महादेव मंदिर जिला समेत पूरे प्रदेश में चर्चित है. इस मंदिर में जिलावासियों के आलावा सहरासा, सुपौल समेत पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से भी लोग पूजा-अर्चना करने आते है. इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग शुरू से ही एक ही आकार में है.

मंदिर के पुजारी

भक्तों की मनोकामना होती है पूर्ण
मंदिर के बारे में यहां के स्थानीय निवासी शंकर महतो बताते है कि यहां सालों मुंडन ,उपनयन संस्कार, शादी और भजन- कीर्तन चलते रहते है. सावन माह में यहां पूरे सूबे के लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है. ऐसी मान्यता है कि यहां पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों को बाबा कभी खाली हाथ नहीं लौटने देते है.

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मंदिर प्रंगण में है तीन शिक्षा केंद्र
बताया जाता है कि इस मंदिर के प्रंगण में शिक्षा के 3 बड़े माध्यम अवस्थित है. मंदिर परिसर में प्राथमिक विद्यालय, मध्य विद्यालय, उच्च विद्यालय के साथ संस्कृत महाविद्यालय स्थापित हैं. मंदिर परिसर में एक तलाब भी स्थापित है. स्थानीय बताते है कि तालाब की खुदाई किसने करवाई इस बात का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं. लोगों ने जिला प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है. लेकिन जिला प्रशासने की उदासीनता के कारण यहां का विकास नहीं हो पा रहा है.

ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

'1853 में अवस्थित था गुरूकुल'
मंदिर के ऐतिहासिक तथ्यों के बारे में बताते हुए मंदिर के पुजारी उपेंद्र गिरी का कहना है कि यह मंदिर काफी ऐतिहासिक है. उन्होंने बताया कि विगत कुछ दिनों पहले यहां पर पुरातत्व विभाग की टीम आई थी. विभाग ने बताया कि 1853 ई. में यहां गुरूकुल हुआ करता था. उससे पूर्व ही यहां पर अंकुरित शिवलिंग उत्पन्न हुई थी. आदीकाल में यहां पर घनघोर जंगल हुआ करता था. यहां पर शमशान की भूमी थी. उपेंद्र गिरी ने बताया कि इस मंदिर में हमारी 7 वीं पीढ़ी पूजा-अर्चना कर रही है.

स्थानीय निवासी

पाल वंशीय राजा ने किया था स्थापित
स्थानीय लोगो का कहना है कि इस मंदिर का निर्णाण पाल वंशीय राजा मदन पाल ने 13 वीं शताब्दी में किया था. मंदिर से आधा किमी दक्षिण धोकरा टोल मे मदनपाल के डीह होने का सबूत आज भी मौजूद है. दंतकथाओं के अनुसार स्थानीय बताते है कि राजा बलि बलिराजगढ़ से प्रतिदिन पूजा अर्चना को यहा आते थे.

मंदिर की पौराणिक कथा
बताया जाता है कि स्थल पूर्व में घनघोर जंगल हुआ करता था.इलस गांव के भगवान भोले के अन्नय भक्त बाबूजी राय ने स्वप्न मे इस शिवलिंग को देखा. जिसके बाद सुबह वे जंगल में जाकर खुदाई कर शिवलिंग को निकाला. जिसके बाद उन्होंने पास के एक पीपल के वृक्ष के नीचे इसकी स्थापना कर पूजा अर्चना प्रारंभ की. उन्होंने पास के लोगों के सहयोग से वहां पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया. वर्तमान समय में आज भी मंदिर का रंग रोगन और देखभाल इन्ही की पीढ़ी करती है.

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