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मधेपुरा के सैकड़ों बुनकरों पर सरकार नहीं दे रही ध्यान, बदहाली की जिंदगी जीने को हैं मजबूर - सरकार

मधेपूरा जिले के लगभग 250 बुनकर परिवार बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर है. इन बुनकरों पर सरकार की ओर से भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता. जिससे अधिकांश बुनकर यह काम छोड़ कर बाहर की ओर पलायन कर रहे हैं.

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Published : Feb 7, 2020, 8:45 PM IST

मधेपुराः एक तरफ जहां केंद्र और राज्य सरकार खादी उद्योग को बढ़ावा देने के दावे करती है. वहीं, दूसरी तरफ मधेपुरा जिले के सैकड़ों बुनकर परिवार बेरोजगारी की वजह से बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर है.

बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर
आपको बता दें कि जिले के बिहारीगंज अनुमंडल के रामपुर देहरु गांव के तकरीबन 250 बुनकर परिवार बदहाली की हालत में जीने को मजबूर हैं. दो दशक पूर्व तक बिहार के बाहर भी यहां से खादी और सूती के सामान जाया करते थे. लेकिन वक्त बदलने के साथ ही यहां के बुनकरों की चमक भी फीकी पड़ने लगी. मुख्य रूप से जिले के मंजौरा, रामपुर, पुरैनी और बिहारीगंज की बुनकर समिति में जुड़े हजारों बुनकर परिवार रोजगार पाते थे. बुनकरों की ओर से खादी के वस्त्र धोती, गमछा, लूंगी, चादर मच्छरदानी आदि तैयार किया जाता था.

खादी का गमछा दिखाता बुनकर

बड़ी संख्या में बुनकर कर रहे पलायन
वहीं, बुनकर ऐनुल अंसारी का कहना है कि पहले परिवार के सभी लोग एक साथ मिलकर काम किया करते थे, जिससे हमें रोजगार मिलने के साथ-साथ अच्छे पैसे भी मिल जाते थे. लेकिन अब काफी बड़ी संख्या में लोग पलायन कर चुके हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

सरकार नहीं दे रही बुनकरों पर ध्यान
मोहम्मद बकर अंसारी का कहना है कि जब से कपड़ा बुनने का काम बंद हुआ है, तब से मेहनत मजदूरी करके किसी तरीके से अपना परिवार चला रहे हैं. सरकार हम पर कोई ध्यान नहीं दे रही है. मोहम्मद कूदूस का कहना है कि हमारे हालात पहले अच्छे थे. हमारी कई पीढ़ियां बुनकर के रूप में काम करती रही है. लेकिन वर्तमान में सरकार हमारे साथ अनदेखी कर रही है.

बुनाई करने वाला सामान

कुटीर उद्योग 1995 से बंद
मुखिया मोहम्मद शिकंदर अंसारी का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार की उदासीनता की वजह से यहां कुटीर उद्योग 1995 से ही बंद है. 24 घंटे कुटीर उद्योग की आवाज से पूरा मोहल्ला गूंजता रहता था. सभी को अच्छा रोजगार मिल रहा था. आज यहां से अधिकांश लोग दिल्ली और पंजाब में कमा कर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं.

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