कटिहारःकोरोना के चलते देशभर में किये गये 21 दिन के लॉक डाउन से देश की रफ्तार थम गयी है. रेल, ट्रांसपोर्ट सब कुछ बन्द है. जिसका सबसे ज्यादा असर समाज के उन अंतिम पायदान के लोगों पर हुआ है. जो रोजाना कमाने-खाने वाले लोग हैं. कटिहार में ऐसे हजारों मजदूर हैं जो रेलवे यार्ड में डेली वेजेज पर माल ढुलाई करते हैं. लेकिन लॉक डाउन के दरम्यान इनके सामने भुखमरी का संकट आ खड़ा हुआ है.
कटिहारः मक्के के सीजन में इलाका रहता था गुलजार, रेलवे यार्ड के मजदूरों के गुजर रहे हैं फाकाकशी में दिन
स्थानीय मजदूर अरविंद यादव बताते हैं कि माल ढुलाई और लदान होने से उन्हें आमदनी होती रहती थी. लेकिन लॉक डाउन ने बुरी तरह प्रभावित किया है. स्थानीय मजदूर श्रवण कुमार बताते हैं कि इस सीजन में फुर्सत नहीं मिलती थी. लेकिन इस बार की बात कुछ और ही है. पहले अनाज, सीमेंट, नमक जैसे चीजों की रोज रैकें लगती थी. लेकिन लॉक डाउन में सबकुछ बन्द है. पहली बार रैक लगी हैं तो कुछ काम हो रहा है.
लॉक डाउन से मजदूर परेशान
बताया जाता है कि इस रैक में मक्के की फसल का लदान होना है. इस रैक को लेकर मजदूरों के चेहरे पर खुशी और गम दोनों हैं. खुशी इस बात की है कि लॉक डाउन में पहली बार मजदूरों को काम मिला है. जिससे कई दिनों से भूखे पेट को राहत मिलेगी और परिवार के अन्य लोगों के लिये भी कुछ अनाज खरीद पायेंगे. वहीं दूसरी ओर गम इस बात का है कि प्रत्येक साल रेलवे यार्ड में मध्य मार्च से लेकर मिड अप्रैल तक इलाका गुलजार रहता था. किसानों के तैयार लाखों क्विंटल मक्के मालगाड़ियों के रैक के जरिये दूसरे प्रदेशों में भेजे जाते थे. जिसमें यह मजदूर लदान का काम करते थे और हालात ऐसी होती थी कि इन्हें पसीने पोछने की भी फुर्सत नहीं मिलती थी. जिससे इन मजदूरों को खा-पीकर कुछ बचत भी हो जाया करती थी. लेकिन इस लॉक डाउन के कारण सब खराब हो गया. ना तो यहां मंडियों से माल पहुंच पाते हैं और माल नहीं होने की वजह से रैके खाली पड़ी रहती है.
वहीं, स्थानीय मजदूर अरविंद यादव बताते हैं कि माल ढुलाई और लदान होने से उन्हें आमदनी होती रहती थी. लेकिन लॉक डाउन ने बुरी तरह प्रभावित किया हैं. स्थानीय मजदूर श्रवण कुमार बताते हैं कि इस सीजन में फुर्सत नहीं मिलती थी. लेकिन इस बार की बात कुछ और ही हैं. पहले अनाज, सीमेंट, नमक जैसे चीजों की रोज रैकें लगती थी. लेकिन लॉक डाउन में सब कुछ बन्द है. पहली बार रैक लगी हैं तो कुछ काम हो रहा है.
14 अप्रैल के बाद लॉक डाउन की अवधि बढ़ी तो लोगों के संकट दोगुने होने के आसार
लॉक डाउन का असर किसानों के खेतों से लेकर मंडियों तक पड़ा है. जहां खेतों में पके फसल को काटने के लिये मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं. वहीं जैसे-तैसे यदि फसल काट कर तैयार भी कर ली गयी तो मंडियां बन्द होने की वजह से बिक्री नहीं हो पा रही है और किसानों ने ज्यादा हाथ-पैर मारा तो व्यापारी औने-पौने दामों में इस खरीदते हैं. जिससे किसानों की खेतों में लगी लागत पूंजी भी नहीं निकल पा रही हैं. ऐसे में लॉक डाउन ने किसान और उससे जुड़े मजदूरों पर गहरा प्रभाव डाला हैं. यदि 14 अप्रैल के बाद लॉक डाउन की अवधि बढ़ जाती है, तो लोगों के संकट दोगुने होने के आसार है.