कटिहार:कोरोना त्रासदी ने बड़े-बड़े उद्योगों के साथ कृषि को काफी प्रभावित किया है. जिले में बड़े पैमाने पर मक्के की खेती की जाती है. लेकिन कोरोना के बाद प्राकृतिक कहर ओलावृष्टि के साथ आंधी बारिश ने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी. किसान कोरोना और मौसम की दोहरी मार झेलने को मजबूर है. पहले बारिश के कारण फसल लगभग बर्बाद हो चुकी थी. इसके बाद तैयार फसल को सूखाने के बाद भी किसानों को मायूसी झेलनी पड़ रह रही है.
'मक्के से आती थी किसानों के चेहरे पर मुस्कान'
इसको लेकर किसान रूपेश उरांव और मुश्ताक ने बताया कि यहां के किसान बड़े पैमाने पर मक्के की खेती करते हैं. फसल तैयार होने के बाद उसे दूसरे राज्यों में भेजा जाता था. लेकिन लागू लॉकडाउन के कारण सब बर्बाद हो गया. पहले बारिश-आंधी उसके बाद कोरोना संकट ने हमलोगों की कमर तोड़ कर रख दी. किसानों का कहना है कि बंदी के कारण बाहर से व्यापारी यहां पर नहीं आ सके. इस वजह से वे अपने फसल को स्थानीय व्यापरियों को बेचने को मजबूर है. जो मक्का पिछली बार 14 सौ से 15 सौ रुपये क्विंंटल बेचा करते थे. उसे इस बार 500-600 रुपये क्विंटल बेच रहे है. लागत से भी काफी कम कीमत ऊपर हो रही है.