कटिहार: कोरोना संकट के दौरान पीएम मोदी ने 'वोकल फॉर लोकल' का नारा दिया था. प्रधानमंत्री ने केन्द्रीय सशस्त्र बलों के कैंटिन में देशी उत्पादों को रखने का भी निर्देश दिया था. लगभग एक हजार से अधिक विदेशी उत्पादों को सरकारी कैंटिन से बाहर का रास्ता भी दिखाया गया.
वोकल फॉर लोकल के बीच चीन सीमा विवाद के बाद पूरे देश में चाइनीज उत्पादों का पूरजोर विरोध होने लगा. लेकिन, चाइनीज उत्पाद से बाजार को छूटकारा मिलना इतना आसान नहीं दिख रहा है. कटिहार के बाजार में चाइनीज मांगुर मछलियों की भारी मांग है. हालांकि, सरकारी फाइलों में चाइनीज मांगुर की बिक्री पर रोक लगी हुई है. लेकिन कम कीमत होने की वजह से यह मछली खुलेआम बाजार में प्रशासन के नाक के नीचे बेची जा रही है.
'मात्र 120 रुपये किलो चाइनीज मांगुर'
मछली विक्रेता शोभा देवी बताती हैं कि लोगों को ताजी मछलियां चाहिए. देशी मछली ज्यादा देर तक जिंदा नहीं रह सकती है. चाइनीज मांगुर कम पानी में भी काफी देर तक सर्वाइव करता है. सस्ता होने की वजह से ग्रहकों की जेब पर बोझ भी नहीं पड़ता है. जहां देशी मांगुर की कीमत बाजार में लगभग 1 हजार रुपये प्रति किलो है. वहीं, चाइनीज मांगुर मात्र 120 रुपये किलो बाजार में उपलब्ध है. बाजार में देशी मछलियों की भरमार भी है. लेकिन कम कीमत के कारण बाजार में चाइनिज मछलियों की मांग अधिक है.
'कौन खाएगा हजार रुपये किलो वाला मछली'
स्थानीय राम यादव बताते हैं कि वे मछली के काफी शौकिन है. देशी मांगुर की कीमत हजार रुपये किलो से भी अधिक है. एक हजार रुपये लगाकर मछली तो नहीं खा सकते हैं. इस वजह से वे चाइनीज मछलियों को ही प्रथमिकता देते हैं. उन्होंने कहा कि बाजार में केवल मछली ही नहीं इलेक्ट्रानिक्स के 'मेड इन चाइना' ने भी बाजार में हलचल मचा रखी है. चाइनीज सामान कम कीमत में अच्छी किस्म की होती है. इसलिए सरकार देशी उत्पादों को बढ़ावा देने लिए टैक्स कम करें और लोगों के बीच जागरूकता अभियान चलाए.
'देशी मांगुर का पालन राज्य में नहीं के बराबर'
इस मामले पर जिला मत्स्य पदाधिकारी शंभु कुमार नायक ने ईटीवी भारत संवाददाता से बात करते हुए कहा कि प्रदेश में चाइनीज मांगुर की खरीद-बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध है. बिहार में देशी मांगुर का पालन लगभग नहीं के बराबर हो रही है. इलाके के लोग सीमावर्ती पश्चिम बंगाल के कुछ जगहों से इसका सीड लाते हैं. वहां भी इसका सीड लिमिट में ही मिलता है. इसलिए देशी मांगुर का उत्पादन राज्य में नहीं हो रहा है.
शंभु कुमार नायक, जिला मत्स्य पदाधिकारी चाइना के ताइवान शहर से भारत में आया था विदेशी मांगुर
जिला मत्स्य अधिकारी ने बताया कि विदेशी मूल का चाइनीज मांगुर चाइना के ताइवान, दक्षिण अफ्रीका और दूसरे देशों से भारत मे आया था. यह वजन में काफी हल्का होता है. इसका साइज भी देशी मछलियों के मुकाबले बड़ा होता है.देशी मांगुर को बिहार सरकार ने 'राजकीय मछली' का दर्जा दिया है. लेकिन बिहार में इसके पालन के लिये हेचरी नहीं हैं.