कैमूर (भभुआ):देश के प्राचीन मंदिरों में मुंडेश्वरी मंदिरको माना जाता (Mundeshwari Temple Of Kaimur Has Special Significance) है. बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर प्रखण्ड के पवरा पहाड़ी पर स्थित माता मुंडेश्वरी मंदिर (Mundeshwari Temple On Pavra Hill In Kaimur) है. जो समतल से 600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. नवरात्र चढ़ते ही लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ इस मंदिर में उमड़ती है. नव दिन माता के दर्शन के लिए भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है. देश के कई राज्यों से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं. पुरातत्वविदों के अनुसार 389 ईसवी में नक्काशी किया गया है. जबकि मूर्तियां उत्तरगुप्त कालीन की बना हुई हैं. यह मंदिर अष्टकोणीय है, माता मुंडेश्वरी मंदिर की कहानी है कि मुंड राक्षस को माता ने वध किया था, उसके बाद मंदिर का नाम मुंडेश्वरी मंदिर पड़ा.
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कैमूर में है मुंडेश्वरी मंदिर :मुंडेश्वरी मंदिर का बलि प्रथा देश के मंदिरों से अलग है जो बिना रक्त गिराए चढ़ाई जाती है. रक्त विहीन यानी कि बकरों को बिना बलि दिए श्रद्धालुओं की मन्नत पूर्ण हो जाती है. मंदिर में जब कोई श्रद्धालु अपनी मन्नत पूर्ण के बाद बकरा लेकर आता है तो पहले उसका मंदिर के कर्मचारियों द्वारा रजिस्ट्रेशन किया जाता है. उसके बाद मंदिर में ले जाकर माता मुंडेश्वरी के चरणों में पुजारी चढ़ाते हैं फिर सिर्फ चावल और फूल के अछत मात्र से बकरा मूर्छित हो जाता है और यह मान लिया जाता है कि मां ने बलि स्वीकार कर ली. फिर उस श्रद्धालु को बकरा वापस कर दिया जाता है. तो वहीं दूसरा पहलू मंदिर का अद्भुत है जो मंदिर के प्रांगण में स्थित पंचमुखी महादेव शिव का मंदिर है. जो सूर्य के साथ तीन से चार बार रंग बदलता है. अनुसंधान के अनुसार यह शिवलिंग मंदिर से नीचे 108 फीट गहराई तक है.
'मंदिर अष्टकोणीय मंदिर है, जिससे माता के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं को धन, वैभव, शांति की प्राप्ति होती है. भारत देश में पहला देवी मंदिर है, जहां रक्त विहीन बलि देने की प्रथा है. यानी कि बकरे को चावल और फूल के अछत से बलि देने का प्रथा है. श्रद्धालु जो भी मन्नत मांगते है, उसे माता पूर्ण कर देती हैं.'- राधेश्याम झा, पुजारी, माता मुंडेश्वरी मंदिर
क्या कहते हैं श्रद्धालु :श्रद्धालुआर्मी कैप्टन त्रिवेणी साह, शिवम गुप्ता, पंकज मोदी, अनुराग केशरी का कहना है कि माता हर श्रद्धालु की मन्नत पूर्ण करती हैं. इसलिए कोई बच्चा, धन, निरोग की मन्नत रखते हैं, पूर्ण होने पर माता को चढ़वा चढ़ाया जाता है. इसके साथ ही समाजसेवियों द्वारा दशहरा में नव दिन तक श्रद्धालुओं को निशुल्क खाना भी प्रसाद के रूप में दिया जाता है. इसके साथ ही चल रहे नगर निकाय चुनाव में भी प्रत्याशी जीत के लिए माता मुंडेश्वरी के दरबार मे हाजिरी लगाने पहुचते हैं.
मां मुंडेश्वरी मंदिर की अनोखी प्रथा :मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यहां एक अनोखी प्रथा है. यहां बकरे को काटा नहीं जाता. पुजारी अक्षत और फूल लेकर मंत्र पढ़ते हैं. जिसके बाद बकरा मां के चरणों में मरणासन्न स्थिति में बता दें कि मुंडेश्वरी धाम काफी ऊंची पवरा पहाड़ी पर स्थित है. इस मंदिर के शिलालेख के अनुसार कहा जाता है कि यह मंदिर काफी प्राचीन है. यह देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में एक है. पूरे विश्व में मां मुंडेश्वरी धाम रक्तहीन बलि के लिए जाना जाता है. मंदिर को भारतीय पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित किया है. मां के मुख्य मंदिर के बीच में पंचमुखी शिवलिंग है.