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कैमूर: ब्लैक राइस की खेती कर खुद से अपनी तकदीर बदल रहे किसान - farmers are farming Black rice

किसानों ने बताया कि 3 पैकेट बीज की कीमत 21 सौ रूपये है. पहली बार उन्होंने 20 एकड़ में इसकी खेती शुरू की. जिससे उन्होंने 9 क्विंटल धान का उत्पादन किया.

ब्लैक राइस की खेती
ब्लैक राइस की खेती

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Published : Jan 23, 2020, 9:40 PM IST

कैमूर:जिले को धान का कटोरा कहा जाता है. लेकिन पिछले कुछ सालों से किसानों को पारंपरिक खेती की वजह से लगातार घाटा हो रहा था. ऐसे में किसानें ने खुद अपनी तकदीर को बदलने के लिए परंपरागत खेती से हटकर अलग खेती करनी शुरू की. जिसके बाद किसानों के चेहरों पर मुस्कान धीरे-धीरे वापस आने लगा.

दरअसल, जिले के भगवानपुर प्रखण्ड के बखांर बांध के किसानों ने ब्लैक राइस की खेती करनी शुरू की. इस बाबत किसान शिव निवास सिंह बताते हैं कि इस चावल में काफी औषधीय गुण पाए जाते हैं. ब्लैक राइस शुगर फ्री है और वे खुद शुगर के मरीज हैं. उन्होंने बताया कि इसकी खेती केवल जैविक खाद का उपयोग कर किया जाता है.

'चावल में औषधीय गुण'
किसान शिव निवास सिंह ने कहा कि उन्होंने पहली बार इस धान को यूपी में अपने रिश्तेदार के यहां देखा था. जिसके बाद उन्होंने इसको लाकर अपने यहां प्रयोग के तौर पर बोया. जिसके बाद उन्होंने इसकी खेती वृहद पैमाने पर शुरू की. उन्होंने बताया कि वे जब से इस काले चावल से बने हुए खाना को खा रहे हैं. तब से उनका शुगर कंट्रोल में है. इस चावल में गजब के औषधीय गुण हैं.

ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट

'3 पैकेट बीज से 9 क्विंटल धान'
किसान शिव निवास सिंह ने बताया कि 3 पैकेट बीज की कीमत 21 सौ रूपये हैं. पहली बार उन्होंने 20 एकड़ में इसकी खेती शुरू की. जिससे उन्होंने 9 क्विंटल धान का उत्पादन किया. उन्होंने कहा कि परंपरागत खेती और इस धान की खेती में कुछ ज्यादा अंतर नहीं है. ब्लैक राइस 140 से 150 दिनों तैयार होता है और इसकी खेती में केवल जैविक खाद का प्रयोग किया जाता है.

'कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए फायदेमंद'
वहीं, इस मामले पर आत्मा के उप परियोजना निर्देशक नवीन कुमार सिंह ने कहा कि ब्लैक राइस की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं. यह कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए काफी फायदेमंद होता है. उन्होंने शुगर फ्री चावल होने के सवाल पर इस पर जांच की बात कही. नवीन कुमार ने कहा कि बाजार में इस चावल की काफी ज्याद मांग है. इसकी खेती में परंपरागत खेती के मुकाबले कम लागत आता है. जिस वजह से यह किसानों के लिए फायदे की खेती है.

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