गोपालगंज:जिले मेंहर साल की तरह इस साल भी बाढ़ (Bihar Flood ) ने कहर मचाया है. उत्तर बिहार की लाखों की आबादी सालों से बाढ़ का कहर झेल रही है. इसी कड़ी में जगीरी टोला गांव में बाढ़ से भयभीत लोग अपने ही आशियाने को तोड़ कर पलायन करने को मजबूर हैं. बाढ़ पीड़ितों का कहना है कि बाढ़ एक बार फिर दस्तक देगी और हमारा मकान टूटेगा. लेकिन मकान के निर्माण में लगे ईंट, सरिया समेत कई निर्माण सामग्री बर्बाद हो जाएगी इससे अच्छा है, कि क्यों न अपने से ही मकान को तोड़ दें. जिससे कि इनमें से निकली सामग्री काम आ जाएगी. हालांकि, सरकार की ओर से राहत एवं बचाव कार्य के निर्देश दिए गए हैं.
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बारिश से गंडक नदी नदी उफान पर
बाढ़ पीड़ितों के मुताबिक पिछले दिनों वाल्मीकि नगर बराज से छोड़े गए 4 लाख 12 हजार क्यूसेक पानी और लगातार हुई भारी बारिश से गंडक नदी नदी उफान पर थी. जिसकी वजह से जिले के 6 पंचायत के 21 गांव बाढ़ की चपेट में आये थे. कई घर बाढ़ के पानी में समा गए. हालांकि, नदी के जलस्तर में हुई कमी के कारण लोगों के घरों में लगे पानी निकल गए है. लेकिन दियरा इलाके के लोगों को अभी भी बाढ़ के खतरा बना हुआ है. जिसके कारण इन बाढ़ पीड़ित जिस मकान को अपने हाथों से संवारा उसी हाथों से अब तोड़ कर पलायन कर रहे हैं.
बाढ़ की त्रासदी से परेशान
वहीं, बाढ़ की त्रासदी से जिले की एक बड़ी आबादी दुश्वारियों की जिदंगी जीती रही है. कहीं मकान गिरते रहे हैं, तो कहीं घरों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाने से सबकी जिदंगी नारकीय हो जाती है. ऐसे में बाढ़ से घर गिरने के बाजाये लोग अपने हाथों ही अपना आशियाना उजाड़ रहे हैं. अपना आशियाना उजाड़ते समय उन्हे परेशानी हो रही है, लेकिन उनके सामने अब दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है. बाढ़ में होने वाली परेशानियों को रोकने के लिए सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च होता है. जिससे ग्रामीणों को बाढ़ और उसकी कटान से बचाया जा सके. लेकिन हर साल सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना अधिकारियों की लापरवाही की भेंट चढ़ जाती है. इस साल भी सरकार ने बाढ़ और नदी से होने वाली कटाव के समाधान के लिए करोड़ों का बजट दिया है.
खुद ही तोड़ रहे आशियाना
बाढ़ ग्रस्त गांवों के ग्रामीणों ने घर को नदी में समा जाने के डर से अपना आशियाना खुद ही तोड़ना शुरू कर दिया है. जिससे उसमें लगी ईंट का उपयोग बाद में किया जा सके. जगीरी टोला गांव निवासी बाढ़ पीड़ित महिमुद्दीन अंसारी ने बताया कि कौन चाहता है कि अपना बना बनाया मकान तोड़ कर पलायन करें, लेकिन मजबूरी में अपना ही घर तोड़ना पड़ रहा है. सरकार बाढ़ के रोकथाम के लिए कोई स्थाई निदान नहीं निकाल रही है और ना ही निकालेगी. इसलिए हम लोग यहां मरेंगे तो नहीं बल्कि अपना मकान तोड़कर हम पलायन कर रहे हैं.