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गोपालगंज: वैदिक पंडितों ने विधि-विधान से की भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना

कोरोना महामारी का असर कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर भी दिखा. भक्त भीड़-भाड़ से बचने के लिए ऐहतियातन मंदिर नहीं गए, अपने-अपने घरों पर ही पूजा-अर्चना की.

गोपालगंज
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Published : Aug 12, 2020, 12:59 PM IST

गोपालगंज:जिला सहित पूरे प्रदेश मेंकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया गया.शहर के हजियापुर मोहल्ले में वैदिक पंडितो ने भगवान श्रीकृष्ण की जयंती के अवसर पर विधि विधान से की पूजा अर्चना की. भगवान कृष्ण के लिए बनाई गई पालने पर भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर मंत्रोच्चार के साथ पूजा की शुरूआत की गई. कोरोना महामारी को लेकर जारी लॉकडाउन की वजह से भक्त मंदीरों जाने से परहेज किए. अपने-अपने घरों में पूजा-पाठ की गई.

रोहिणी नक्षत्र में हुआ था कृष्ण का जन्म
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के रोहिणी नक्षत्र में रात्रि बारह बजे हुआ था. प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म में जन्माष्टमी के त्योहार को बहुत महत्व रहा है. भगवान श्री कृष्ण को मोक्ष देने वाला माना गया है. जन्माष्टमी का व्रत करने से सुख-समृद्धि और दीर्घायु का वरदान मिलता है. साथ ही भगवान श्री कृष्ण के प्रति भक्ति भी बढ़ती है. जन्माष्टमी का व्रत करने से अनेकों व्रतों का फल मिलता है.

भगवान श्रीकृष्ण जन्म का बेहद महत्वपूर्ण कारण से हुआ था, क्योंकि उन्हें अपने ही मामा कंस का वध करना था. कंस की एक बहन थी देवकी. एक दिन आकाशवाणी हुई कि हे कंस, तेरी इस प्रिय बहन के गर्भ से जो आठवीं संतान होगी वही तेरी मृत्यु का कारण बनेगी. इसलिए कंस ने अपनी बहन को कारागार में डाल दिया. जैसे ही देवकी किसी बच्चे को जन्म देती कंस उसे तुरंत जान से मार देता था. जब आठवें बालक यानी श्रीकृष्ण को देवकी ने जन्म दिया, तब भगवान विष्णु की माया से कारागार के सभी ताले टूट गए और भगवान श्री कृष्ण के पिता वासुदेव उन्हें मथुरा नंद बाबा के महल में छोड़ कर चले गए.

कृष्ण ने किया था कंस का वध
मथुरा एक कन्या ने जन्म लिया था. वह कन्या माया का अवतार थी. वासुदेव उस कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गए. कंस ने उस कन्या को देखा और गोद में लेकर उसे मारने की इच्छा से जमीन पर फेंक दिया. नीचे फेंकते ही वो कन्या हवा में उछल गई और बोली कि कंस तेरा काल यहां से जा चुका है. वही कुछ समय बाद तेरा अंत भी करेगा. मैं तो केवल माया हूं. कुछ वर्ष बाद ऐसा ही हुआ भगवान श्रीकृष्ण ने कंस के महल आकर वहीं उसका अंत किया. मान्यता है कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु का ही अवतार हैं. जिन्होंने द्वापर युग में अनेकों राक्षसों का वध किया था. साथ ही यह वही परम पुरुषोत्तम भगवान हैं, जिन्होंने कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था.

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