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किसानों के लिए बड़े मुनाफे का सौदा है मोदी सरकार का ये 'मिशन', इस खेती से कमा पाएंगे लाखों

केंद्र और राज्य सरकार कई योजनाएं चलाती है. आम से लेकर खास तक योजनाओं को पहुंचाना सरकार का लक्ष्य होता है. ऐसे में लोगों को योजनाओं के बारे में जागरुक करने के लिए ईटीवी भारत 'हमारी सरकार...हमारी योजना' नाम की सीरीज चला रही है. जिससे लोगों तक सरकारी स्कीम की जानकारी पहुंचे.

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Published : Aug 26, 2019, 7:00 PM IST

राष्ट्रीय बांस मिशन योजना

गोपालगंज: ग्रीन गोल्ड के नाम से मशहूर राष्ट्रीय बांस मिशन योजना जिले में अब तक शुरु नहीं हो सकी है. साल 2006- 2007 में केंद्र सरकार की सहायता से राष्ट्रीय बांस मिशन की शुरूआत की गई थी. लेकिन गोपालगंज में राष्ट्रीय बांस मिशन योजना शुरु नहीं हुई इससे स्थानीय किसानों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है. इस कारण बांस की खेती के इच्छुक किसानों में काफी निराशा है.

बांस की खेती से समृद्ध बनेंगे किसान
केंद्र सरकार की इस योजना का मुख्य मकसद है बांस की खेती कराकर किसानों को समृद्ध बनाना. देश के किसानों के लिए मोदी सरकार कई योजनाएं चला रही है. उनमें से बैंबू मिशन भी शामिल है. इस मिशन के तहत किसान बांस की खेती करने वाले किसानों को सरकार प्रति पौधे 120 रू देगी. ऐसे में इच्छुक किसान बांस की खेती करना तो चाहते है लेकिन विभागीय उदासीनता और समुचित प्रोत्साहन नीति के अभाव में इसे व्यवसायिक रूप नहीं दिया जा सका.

हरा सोना यानी ग्रीन गोल्ड
बांस की खेती के काम में लगे किसान

फायदेमंद है बांस की खेती
जानकारों के मुताबिक सरकारी स्तर पर बांस की खेती के लिए अनुदान की व्यवस्था है लेकिन इसकी पूरी जानकारी किसानों को नहीं है. अगर बांस की खेती को पूरा प्रोत्साहन मिले तो बाढ़ प्रभावित इस इलाके में दूसरे दृष्टिकोण से भी इसकी खेती फायदेमंद साबित हो सकती है. बांस की पत्तियां ऑर्गेनिक खाद का काम करती है. अगर इसमें व्यवसायिक दृष्टिकोण अपनाया जाए तो प्रति एकड़ 75 हजार से 1 लाख तक की कमाई की जा सकती है.

विभागीय उदासीनता का शिकार योजना
इस मामले में कृषि पदाधिकारी वेद नारायण सिंह ने भी माना कि गोपालगंज में बैंबू मिशन चालू नही है. हालांकि उन्होंने कहा कि अगर किसान बांस की खेती करने के इच्छुक है तो प्रदेश स्तरीय बैठक में इस बात को रखा जाएगा. साथ ही इस ओर सरकार का ध्यान आकर्षित कराने की कोशिश की जाएगी.

हरा सोना यानी ग्रीन गोल्ड

राष्ट्रीय बांस मिशन के मुख्य उद्देश्य
राष्ट्रीय बांस मिशन एक केन्द्र प्रायोजित योजना है. बांस के वृक्ष की व्यापक क्षमता के मद्देनजर इसकी स्थापना की गई है. इस स्कीम को कृषि एवं सहकारिता विभाग, कृषि मंत्रालय की ओर से चलाया जा रहा है. इसका मुख्य उद्देश्य बांस की खेती से किसानों को समृद्ध बनाना है. इसके अलावा गैर सरकारी वन और निजी भूमि में बांस के रोपण क्षेत्र को बढ़ाना और उद्योग में बांस की गुणवत्ता एवं बांस के कच्चे माल की उपलब्धता पर जोर देना जैसे प्रमुख लक्ष्य शामिल हैं.

बैंबू की खेती के लिए क्या करें:

  • यदि आप बैंबू की खेती लगाना चाहता है, तो सबसे पहले अपने जिले के डीएफओ यानी डिस्ट्रिक्ट फॉरेस्ट ऑफिसर के पास आवेदन करें.
  • आवेदन करने के बाद डीएफओ उस जगह का निरीक्षण करने के बाद मिशन संचालक को अनुदान राशि देने के लिए चिट्ठी जारी करेंगे.
  • बैंबू प्लांट सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा सर्टिफाइड टिश्यू कल्चर लैब से ही खरीदना होगा.

कितने साल में तैयार होती है बैंबू की खेती?

  • बैंबू यानी बांस की खेती आमतौर पर तीन से चार साल में तैयार होती है.
  • चौथे साल में कटाई शुरू कर सकते हैं.
  • इसका पौधा तीन-चार मीटर की दूरी पर लगाया जाता है.
    बांस के पौधे

किसान को इतनी सरकारी मदद मिलेगी?
आपको बता दें कि पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर अन्य सभा राज्यों में बांस की खेती के लिए सरकार और किसान 50-50 फीसद योगदान देंगे. इस 50 फीसद शेयर में 60 फीसद केंद्र सरकार और 40 फीसद राज्य सरकार लगाएगी. वहीं बात करें पूर्वोत्तर राज्यों की तो वहां पर बांस की खेत करने पर 60 फीसद सरकार और 40 फीसद योगदान किसान की ओर से होगा. इस 60 फीसद में से भी केंद्र सरकार की 90 फीसद और राज्य सरकार की 10 फीसद हिस्सेदारी होगी.

बैंबू से किसान कितना कमा सकेंगे?
एक हेक्टेयर में 1500 से 2500 पौधे लगा सकते हैं. अगर आप 3 गुणा 2.5 मीटर पर पौधा लगाते हैं तो एक हेक्टेयर में करीब 1500 प्लांट लगेंगे. यानी चार साल बाद 3 से 4 लाख रुपये की कमाई तय है. हर साल रिप्लांटेशन करने की जरूरत नहीं. क्योंकि बांस के पौधे की आयु करीब 40 साल की होती है. यानी किसान का जोखिम कम.

बांस की खेती करते किसान

कितने साल में तैयार होती है बैंबू की खेती

  • बैंबू यानी बांस की खेती आमतौर पर तीन से चार साल में तैयार होती है.
  • चौथे साल में कटाई शुरू कर सकते हैं.
  • इसका पौधा तीन-चार मीटर की दूरी पर लगाया जाता है.

किसान को इतनी सरकारी मदद मिलेगी?
बांस की खेती के लिए सरकारी अनुदान की भी व्यवस्था है. पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर अन्य सभा राज्यों में बांस की खेती के लिए सरकार और किसान दोनों को ही 50-50 फीसदी का योगदान का प्रावधान है. सरकार के 50 फीसदी शेयर में 60 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार और 40 फीसदी राज्य सरकार लगाएगी. वहीं बात करें पूर्वोत्तर राज्यों की तो वहां बांस की खेती करने पर 60 फीसद सरकार और 40 फीसद योगदान किसान की ओर से होगा. इस 60 फीसद में से भी केंद्र सरकार की 90 फीसद और राज्य सरकार की 10 फीसद हिस्सेदारी होगी. राष्ट्रीय बैंबू मिशन को तकनीकी सहायता देने के लिए बैंबू टेक्निकल सपोर्ट ग्रुप (BTSG) का भी गठन किया गया है. फिलहाल अभी तीन तरह की BSTSG तकनीक इस मिशन को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग कर रही हैं.

किसान
  • केरल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (KFRI), पीची
  • केन एंड बैंबू टेक्नोलॉजी सेंटर (CBTC), गुवाहाटी
  • इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट रिसर्च एंड एजुकेशन, (ICFRE) देहरादून
    राष्ट्रीय बांस मिशन योजना पर पेश है रिपोर्ट

17 राज्यों को मिला लाभ
जानकारी के अनुसार अभी तक इस स्कीम के तहत 17 राज्यों को लाभ मिल चुका है. इस योजना पर अभी तक ( 30 दिसंबर 2018) 111.05 करोड़ रुपये सरकार खर्च कर चुकी है. इसके अलावा 88 बैंबू ट्रीटमेंट यूनिट्स, 464 प्रोडक्ट डेवलप्मेंट/ प्रोसेसिंग यूनिट्स, 135 इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स बांस के बाजार के प्रोमोशन के लिए बनाए गए हैं. इसके साथ ही बांस की खेती के लिए 15740 हेक्टेयर जमीन की मंजूरी भी मिल चुकी है.

बांस का उपयोग:
पिछले कुछ सालों से लोग घर के डेकोरेशन से लेकर, ज्वेलरी डिजाइन, फ्लोर डिजाइन, हैंडीक्राफ्ट आइटम्स आदि में बैम्बू का उपयोग कर रहे हैं. ऐसे उत्पादों की मांग भी अब पहले से काफी बढ़ गई है. राष्ट्रीय मिशन के संबंध में अधिक जानकारी के लिए आप ऑफिशियल वेबसाइट www.nbm.nic.in पर भी जा सकते हैं.

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