गोपालगंजःबरौली प्रखंड के सरेया नरेंद्र गांव में सालों पहले बना प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र अब तबेला बन गया है. इस स्वास्थ्य केंद्र पर मरीजों का इलाज नहीं बल्कि पशुओं की देखभाल होती है. ऐसे में यह पीएचसी सिर्फ हाथी दांत साबित हो रहा है.
गांव में स्वास्थ्य उपकेंद्र होते हुए भी स्थानीय लोगों को इलाज कराने के लिए 35 किलोमीटर जाना पड़ता है. लाख शिकायत करने के बावजूद स्थानीय प्रशासन की नजरें इस तरफ नहीं जाती.
ग्रामीणों ने अस्पताल को बनाया खटाल
दरअसल, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा बेहतर करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार सुविधा के नाम पर पानी की तरह पैसा बहा रही है. लेकिन विभागीय खामियां व्यवस्था पर हावी हैं. इसकी बानगी बरौली प्रखंड के सरेया नरेंद्र गांव में बना उप स्वास्थ्य केंद्र है.
स्वास्थ्य केंद्र में बंधे मवेशी करीब दस साल पहले इस स्वास्थ्य केंद्र को इसलिए बनाया गया था कि क्षेत्र के लोगों को गोपलगंज सदर अस्पताल का चक्कर इलाज के लिए न काटना पड़े. लेकिन व्यवस्था की खामियों ने इस अस्पताल के वजूद को खत्म कर दिया. हालत यह है कि अस्पताल अब तबेले के रूप में तब्दील हो गया है. इलाज नहीं होने और चिकित्सक नहीं होने के कारण ग्रामीणों ने इस अस्पताल को गाय, भैंस बांधने का सेंटर बना दिया.
जस की तस बनी रही समस्या
सालों पहले उप स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण तो गांव में कर दिया गया लेकिन यहां किसी चिकित्सक की तैनाती नहीं की गई. परिणाम यह हुआ कि ग्रामीणों की समस्याएं जस की तस बनी रही, उन्हें इलाज के लिए सिवान और गोपालगंज का ही चक्कर लगाना पड़ा.
कुछ ग्रामीणों ने इस जगह का बेहतर ढंग से उपयोग किया और इसे तबेला बनाते हुए स्वास्थ्य विभाग के महकमे को असल आइना दिखाया. कई बार चिकित्सक की तैनाती को लेकर ग्रामीणों ने आवाज उठाई, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के कान में जूं तक नहीं रेंगी.
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दुर्व्यवस्था का दंश झेल रहे लोग
5 हजार की आबादी वाले इस गांव के लोग आज भी दुर्व्यवस्था का दंश झेल रहे हैं. कई बार ऐसा हुआ कि बेहद गंभीर स्थिति में किसी मरीज को दूरस्थ अस्पतालों तक पहुंचाने में उसकी जान तक चली गई. आखिर में परिजनों के पास आंसू बहाने के अलावा कुछ नहीं बचा.
कई बार डीएम से लगाई गई गुहार
स्थानीय लोगों की मानें तो इस स्वस्थ्य केंद्र को चालू कराने के लिए कई बार जिलाधिकारी से गुहार लगाई गई. जिलाधिकारी ने निरीक्षण भी किया, इसके बावजूद आज तक यहां स्वस्थ्य सुविधा नहीं मिल पाई. यहां कभी-कभी एक महिला स्वस्थ्य कर्मी सिर्फ टिका देने के लिए आती है. इसके बाद कोई पूछने वाला नहीं है.