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गयाजी में 16वें दिन अक्षयवट में पिंडदान करने की है परंपरा, जानें क्या है मान्यता - पूरे संसार में केवल पांच अक्षयवट

पांचों अक्षयवटों में सबसे ज्यादा गया स्थित अक्षयवट प्रसिद्ध है, यह श्राद्ध कर्म के लिए जाना जाता है. अक्षयवट में खोआ से पिंडदान करने की परंपरा है.

पिंडदान

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Published : Sep 28, 2019, 7:09 AM IST

गया:मोक्षनगरी गयाजी में आज पिंडदान का सोलहवां दिन है. इस अमावस्या तिथि को अक्षय वट तीर्थ में श्राद्ध करते हैं. पूरे संसार में केवल पांच अक्षयवट हैं, जिसमें से एक अक्षयवट गयाजी में है. कहा जाता है कि मोक्षनगरी में स्थित अक्षयवट को मां सीता ने अमर रहने का वरदान दिया था.

पूरे संसार के पांच अक्षयवट प्रयाग, वृंदावन, उज्जैन, गया और श्रीलंका में है. इन सभी अक्षयवटों की जड़ एक है यानी जड़ से जड़ मिली हुई हैं. अक्षयवट के नीचे किए गए पिंडदान, तप-जप और अन्य सभी प्रकार के दान जिसके निमित्त किये जाते हैं, वह उसे अक्षय होकर मिलते हैं.

अक्षयवट में पिंडदान

खोआ से होता है पिंडदान
पांचों अक्षयवटों में सबसे ज्यादा गया स्थित अक्षयवट प्रसिद्ध है. यह श्राद्ध कर्म के लिए जाना जाता है. अक्षयवट में खोआ से पिंडदान करने की परंपरा है. ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से पितर को सनातन अक्षय ब्रह्नलोक की प्राप्ति होती है.

श्रद्धालुओं में है विशेष मान्यता

श्राद्ध के बाद करें दान
अक्षयवट के पास शाक या केवल जल से एक ब्राह्मण को भोजन कराने से एक करोड़ ब्राह्मणों को भोजन कराने का फल मिलता है. अक्षय वट में पर विद्वत विधिवत पिंडदान श्राद्ध करके गया पुरोहित को शय्या दान करें, भोजन दक्षिणा आदि से संतुष्ट कर सुफल आशीर्वाद ले और पितरों का विसर्जन करें. पंडा जी से सुफल बिना लिए गया श्राद्ध पूरा नहीं होता है.

पंडा की होती है पूजा

गीता में भी है उल्लेख
गयाजी में कर्म की शुरुआत फाल्गुन से होती है. वहीं, अंत अक्षयवट से गया नगर से दक्षिण-पश्चिम पर ब्रह्म योनि पहाड़ के तलहटी में अक्षयवट स्थित है. इस अक्षयवट का संबंध में कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने गीता के दसवें अध्याय में कहा है कि सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष मैं ही हूं, यह अक्षयवट वही हैं.

अक्षयवट में पिंडदान

जड़ें देखकर मालूम होती है महत्ता
आज भी इस अक्षयवट इसकी शाखा को देखकर यह स्पष्ट होता है कि यह सैकड़ों वर्ष पुराना वृक्ष है, जो आज भी खड़ा है. हालांकि, गया श्राद्ध का विधान कब से प्रारंभ हुआ, ये नहीं कहा जा सकता. अनादि काल से कर्मकांड चला आ रहा है. तबसे अक्षयवट की वेदी पर पिंडदान करना आवश्यक माना जा रहा है.

विशेष पैकेज

गया पंडों की होती है पूजा
गया श्राद्ध में अक्षयवट की महत्ता इसी से आंकी जा सकती है कि गया वाले पंडा अक्षयवट में आकर पितर पूजा करने वालों को अंतिम सुफल प्रदान करते हैं. जो भी गया श्राद्ध करने के निमित्त आते हैं सर्वप्रथम अपने गया वालों पंडा के चरण पूजा करते हैं. गया वाले पंडा के निर्देशानुसार कोई अन्य ब्राह्मण विभिन्न विधियों पर पिंडदान तथा तर्पण का विधि विधान पूर्ण कराते हैं. जब सभी स्थानों पर पिंडदान तथा तर्पण का कार्य पूर्ण हो जाता है तब गया वाले पंडा अपने यजमान के साथ अक्षयवट जाते हैं, यहां एक वेदी पर पिंडदान करने के पश्चात गया वाले पंडा उन्हें सुफल प्रदान करते हैं.

अंतिम संस्कार अक्षयवट में होता है संपन्न
सारी विधियों के बाद यजमान उनसे से पूछते हैं कि मेरा कार्य सफल हुआ, मेरे पूर्वजों की मुक्ति मिली तो इसके जवाब में गया वाले पंडा सकारात्मक उत्तर देते हैं. पंडा उन्हें आशीर्वाद के तौर पर प्रसाद भेंट करते हैं. गया श्राद्ध का यह पूरा अंतिम संस्कार अक्षयवट में ही संपन्न होता है. अक्षय वट में शुभ फल प्राप्त करने के बाद ही गया श्राद्ध को पूर्ण हुआ माना जाता है. श्राद्ध के लिए गया पहुंचने वाले सभी तीर्थयात्रियों का यहां आगमन निश्चित है.

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