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Published : Sep 25, 2019, 5:05 PM IST

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बचे हुए 4 दिनों में ऐसे करें पिंडदान, वंचित रह गए लोगों के लिए विशेष विधान

पितृपक्ष में पिंडदान करने का विशेष महत्व है, पितृपक्ष में पितर इस नगरी में वास करते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि अपनी संतानों को गया जी आते देख पितर पिंडदान लेने यहां उपस्थित हो जाते हैं.

सुबह से शुरू हो जाता है कर्मकांड

गया:पितृपक्ष 2019 के चार दिन शेष बचे हैं. इन चार दिनों में पिंडदान किया जा सकता है. अगर आप अपनी व्यस्तता के चलते गया जी मे इस वर्ष पिंडदान नहीं कर सकें, तो अभी भी बचे चार दिनों में पिंडदान करने का समय है. इसके लिए विधान है.

पूर्वजो के प्रति श्रद्धा के महासंगम पितृपक्ष मेला को चार दिन बचे हैं. इन चार दिनों में भी पिंडदान किया जा सकता है. ऐसी मान्यता है कि कभी भी गया जी मे आकर पिंडदान कर सकते हैं. पितृपक्ष में पिंडदान करने का विशेष महत्व है, पितृपक्ष में पितर इस नगरी में वास करते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि अपनी संतानों को गया जी आते देख पितर पिंडदान लेने यहां उपस्थित हो जाते हैं.

फल्गु पर पिंडदान करते पिंडदानी

क्या है विधान...
गया जी के पुरोहित राजाचार्य ने बताया गया जी में शेष चार दिनों में एक दिवसीय, तीन दिवसीय और पांच दिवसीय पिंडदान कर सकते हैं. गया जी मे इन तीनों के अलावा सात दिवसीय और पन्द्रह दिवसीय पिंडदान किया जाता है.

गयाजी से खास रिपोर्ट

एक दिवसीय पिंडदान
एक दिन के पिंडदान में मात्र फल्गु तीर्थ, विष्णुपद तीर्थ एवं अक्षयवट तीर्थ में पिंडदान संपन्न किया जाता है. मातृ -पितृ भक्त प्रातः काल फल्गु में स्नान कर तर्पण करें. और यहीं पितरों के लिए पिंडदान करें. मंदिर परिसर में 16 वेदी तीर्थ पर पिंडदान के बाद अक्षयवट में पिंडदान करें. श्राद्ध के लिए तिल ,चावल, जौ, दूध,दही घी का उपयोग करें.

तीन दिवसीय पिंडदान
इसमें पहले फल्गु नदी में स्नान तर्पण के बाद, वहीं तट पर श्राद्ध एवं फिर गदाधर भगवान के चरणामृत से स्नान कराने का विधान है. दूसरे दिन ब्रह्म कुंड में तर्पण -श्राद्ध कर फिर प्रेत शीला, रामशिला रामकुंड काक बली एवं श्वान बलि में पिंड वेदी पर पिंडदान का विधान है.

सुबह से शुरू हो जाता है कर्मकांड

पांच दिवसीय पिंडदान
इस विधान में पहले दिन फल्गु में स्नान तर्पण फिर प्रेतशिला रामशिला एवं काक बलि वेदी पर पिंडदान किया जाता है. दूसरे दिन उत्तर मानस, दक्षिण मानस मातंग व्यापी एवं धर्मारण्य वेदी पर पिंडदान होता है. तीसरे दिन ब्रह्मसरोवर, गो प्रचार बेदी, आमसिरचन ,काकबली एवं तारक वेदी पर पिंडदान किया जाता है. चौथे दिन गया सिर वेदी, विष्णुपद वेदी, नरसिंह वामन दर्शन वेदी पर पिंडदान होता है. पांचवें दिन गदा लोल अक्षयवट, बटेश्वर दर्शन पिंडदान का विधान है.

पन्द्रह या सत्रह दिवसीय पिंडदान- इस पिंडदान को त्रिपाक्षिक पिंडदान कहते हैं. ये पिंडदान संपन्न लोग करते हैं. ये 15 दिवसीय पिंडदान 48 वेदियों पर होता है. इसमें श्राद्ध का सभी कर्मकांड किया जाता है. ये पिंडदान पुनपुन नदी से शुरू होता है.

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