गया:बिहार के गया में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अस्थि कलश (Mahatma Gandhi Ashes In Gaya) है. देशभर में यही एक स्थान है, जहां जहां अस्थि कलश के ऊपर गांधी स्तूप (Gandhi Stupa In Gaya) बना हुआ है. इस गांधी स्तूप के माध्यम से सर्वधर्म समभाव के राष्ट्रपिता बापू के सपने को साकार करने का देश के लिए बड़ा संदेश है.
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1948 में किया गया था शिलान्यास: वर्ष 1948 में गांधी स्तूप का शिलान्यास तत्कालीन राज्यपाल एनएस अणे ने किया था. वहीं स्तूप का उद्घाटन तत्कालीन प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (India First PM Pandit Jawaharlal Nehru) ने 28 दिसंबर 1951 को देश को समर्पित किया था. यहां बापू का अस्थि कलश है, जिस पर गांधी स्तूप से बना हुआ है.
स्तूप से सर्वधर्म समभाव का संदेश:इस स्तूप में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई धर्म पर चित्र भी उकेरे गए हैं, जो संदेश देता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देश को 'सर्वधर्म समभाव' में आजादी की लड़ाई के समय से ही पिरोना चाहते थे. भारत को स्वतंत्रता दिलाने की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अस्थि कलश और गांधी स्तूप देश को सर्वधर्म समभाव की याद दिलाता है. जिसे देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में पर्यटक आते हैं, जिनमें विदेशी भी शामिल है.
गांधी स्तूप के दर्शन के लिए आती है बड़ी हस्तियां: इसे दर्शन के लिए बड़ी राजनीतिक हस्तियां, चाहे वह सत्ता में हो या विपक्ष में आती रहते है. यहां गांधी सस्तूप के पास नीचे में साफ लिखा है, ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सम्मति दे भगवान. गया जिले का यह गांधी स्तूप ऐतिहासिक है. यह गौरव की गाथा में एक कड़ी जैसी है. गयामोक्ष और ज्ञान की भूमि है. ऐसे में इस जगह की अपनी एक अलग बड़ी पहचान है. यह इंटरनेशनल जगह है, ऐसे में बापू का संदेश देने के लिए इस जगह को चुना गया.
महात्मा गांधी पांच बार आए थे गया:गया जिले की पहचान भगवान विष्णु की मोक्ष नगरी और भगवान बुद्ध की ज्ञान स्थली के रूप में है. गया एक ऐसी जगह है, जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 5 बार (Mahatma Gandhi Visit Gaya Five Times) आए थे. यहां 1920 से लेकर कई दफा बापू आए थे.
इस संबंध में जानकार विजय कुमार मिट्ठू ने बताया कि देश भर में सारनाथ समेत कई स्थानों पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अस्थि कलश रखा गया है, लेकिन गया में सिर्फ गांधी स्तूप है. उन्होंने कहा कि गया में महात्मा गांधी का अस्थि कलश रखे जाने और गांधी स्तूप बनाए जाने के पीछे बड़ी वजह यह है कि यहां महात्मा गांधी खुद 5 बार आए थे. उनकी सोच सर्वधर्म समभाव की थी.
"इस संदेश को प्रचारित करने के लिए गया से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती है, क्योंकि यह मोक्ष और ज्ञान की भूमि है. स्तूप में विभिन्न धर्मों के चित्र उकेरे गए हैं. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गांधी स्तूप का उद्घाटन 1951 में किया था. पंडित जवाहरलाल नेहरू खुद चिंतक विचारक थे और निश्चित तौर पर ही उन्होंने सोच समझकर ही गया को चुना और यहां अस्थि कलश रखते हुए गांधी स्तूप बनाया. इस तरह गया में अस्थि कलश महात्मा गांधी और गांधी स्तूप यहां के लिए गौरव की बात है. लोग यहां प्रेरणा लेने के लिए भी आते हैं. गांधी स्तूप के बगल में ही गांधी मंडप बना है, जो अत्यंत ही आकर्षक भी है"-विजय कुमार मिट्ठू, कांग्रेस नेता सह इतिहास के जनकार .