गया: बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 2023का आज तीसरा दिन है. गुरुवार से ही इसकी शुरुआत हो चुकी है. बता दें कि पितृपक्ष मेला 14 अक्टूबर तक चलेगा. पहला दिन पुनपुन पटना में पिंडदानियों ने श्राद्ध तर्पण का कर्मकांड किया, जो तीर्थयात्री पुनपुन को नहीं पहुंच सके, उन्होंने गया के गोदावरी सरोवर में दूसरे दिन पिंडदान किया था. पितृपक्ष मेले के दूसरे दिन गया जी में फल्गु तट पर खीर से श्राद्ध पिंडदान का कर्मकांड होता है. जबकि तीसरे दिन यानी आज प्रेतशिला वेदी पर कर्मकांड किया जाता है.
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पितृ पक्ष मेले का तीसरा दिन आज : पितृपक्ष मेले के तीसरे दिन यानि आश्विन कृष्ण प्रतिपदा को प्रेतशिला, ब्रह्मा कुंड, राम कुंड एवं रामशिला और कागबली पर श्राद्ध करने का विधान है. प्रेतशिला को भूतों का पहाड़ कहा जाता है. कहा जाता है कि अकाल मृत्यु से परलोक सिधारने वाले गया जी स्थित मुख्य वेदियों में से एक प्रेतशिला पिंडवेदी में निवास करते हैं. यहां अकाल मृत्यु से मरने वालों के निमित पिंडदान से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. वह अपने वंंश परिवार को आशीर्वाद देते हैं. पितरों को अकाल मृत्यु से मुक्ति दिलाने के लिए यहां पहाड़ पर सत्तू उड़ाने का भी प्रचलन है.
गया में पिंडदान करते श्रद्धालु
भूतों का पहाड़ के नाम से प्रसिद्ध है प्रेतशिला वेदी : पितृपक्ष मेले के तीसरे दिन यानि आश्विन कृष्ण प्रतिपदा को प्रेतशिला, ब्रह्म कुंड, राम कुंड, रामशिला और काकबली पर श्राद्ध पिंडदान का विधान है. इन वेदियों की अपनी अपनी बड़ी महता है. इन्हीं वेदियों में से एक प्रेतशिला है, जो गयाजी विष्णु पद से करीब 8 मील की दूरी पर स्थित है. इसका पूरा नाम प्रेत पर्वत है. प्रेतशिला पर्वत के नीचे ब्रह्म कुंड स्थित है. ब्रह्म कुंड से लगभग 400 सीढियां चढ़कर प्रेतशिला यानि कि प्रेत पर्वत पहुंचते हैं. इसे भूतों के पहाड़ के रूप में जाना जाता है.
मरने वालों को प्रेत योनि से मिलती है मुक्ति : प्रेतशिला को भूतों का पहाड़ कहा जाता है, जिनकी मृत्यु रोड एक्सीडेंट, जलने, आत्महत्या, हत्या कर दिए जाने से होती है, उसे अकाल मृत्यु कहा जाता है. अकाल मृत्यु से मरने वालों (प्रेत योनि से मुक्ति) के लिए प्रेेतशिला श्राद्ध और पिंडदान का विशेष महत्व है. यही वजह है कि प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान का बड़ा महत्व है. देश के कोने-कोने यानि कि तकरीबन सभी राज्यों और विदेशों से आने वाले तीर्थ यात्री अकाल मृत्यु का शिकार होने वाले पितर को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए प्रेतशिला पर पिंडदान करते हैं.
अकाल मृत्यु से मरने वाली आत्माओं का बसेरा है प्रेत शिला: यहां सत्तू उड़ने का भी प्रचलन है, जिसके बारे में कहा जाता है, कि अकाल मृत्यु में सूतक काल लगा रहता है. सूतक काल में सत्तू का सेवन वर्जित माना जाता है और इसका सेवन पिंडदान के बाद कहा जाता है. इसी को लेकर प्रेतशिला पर तीर्थयात्री सतू उड़ते हैं. इससे अकाल मृत्यु वाले पितर आत्मा अपने वंश परिवार को आशीर्वाद देते हैं और प्रसन्न होकर स्वर्गलोक को जाते हैं. इस तरह प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान का विधान है.
प्रेतशिला वेदी का श्राद्ध में महत्व प्रेतशिला के चट्टानों के दरारों में वास करती है प्रेत आत्माएं: गया जी की मुख्य वेेदियों में से एक प्रेतशिला यानि प्रेत पर्वत के चट्टानों में दरारें है. कहा जाता है, कि इन छिद्रों में प्रेत आत्मा वास करते हैं. यहां जब तीर्थ यात्री अकाल मृत्यु से ग्रसित हुए अपने पितर को प्रेत आत्मा से मुक्ति के लिए जब पिंडदान करते हैं, तो छिद्र से पितर पिंडदान ग्रहण कर लेते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.
संध्या के बाद आते हैं प्रेत के भगवान : कहा जाता है, कि संध्या के बाद यहां कोई नहीं रहता, क्योंकि यहां प्रेत के भगवान आते हैं. इस तरह प्रेतशिला वेदी में पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए यहां पिंडदान का विधान है. विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले के तीसरे दिन प्रेतशिला के अलावे ब्रह्मा कुंड, राम कुंड, रामशिला काकबली पर भी श्राद्ध पिंडदान करना चाहिए.
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