गया : बिहार के गया में हल्दी की खेतीकिसानों के लिए वरदान साबित हो रही है. जिले के टिअर और भगहर गांव के किसान दोमट मिट्टी में हल्दी की खेती कर मालामाल हो रहे हैं. सालाना लाखों रुपये की हल्दी यहां से निकलती है, जो बिहार ही नहीं बल्कि झारखंड तक जाती है. इस तरह हल्दी की खेती कर यहां के किसान अपनी तकदीर बदल रहे हैं.
गांव की दोमट मिट्टी किसानों के लिए वरदान: गया के टिअर और भगहर गांव के किसानों के लिए दोमट मिट्टी वरदान साबित हो रही है. यह मिट्टी हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त होती है. इसलिए यहां के किसान हल्दी की खेती करते हैं. वहीं इस मिट्टी में हल्दी के साथ-साथ अदरक की भी खेती की जाती है. ऐसे में किसान हल्दी के साथ-साथ वैकल्पिक तौर पर अदरक भी उगा रहे हैं. यहां की हल्दी दूसरे राज्यों में भी जाती है.
गया में अपवाद के तौर पर किसान करते हैं हल्दी की खेती :गया जिले में अपवाद के तौर पर ही हल्दी की खेती होती है. इसी अपवाद में गया का टिअर और भगहर गांव है, जहां बड़े पैमाने पर हल्दी की खेती होती है. यहां के किसानों की किस्मत हल्दी की खेती से बदल रही है. एक किलो में 40 से 50 रुपये तक की बचत इन किसानों को हो जाती है. ऐसे में अच्छी आमदनी होने से यहां के किसान हल्दी की खेती व्यापक तौर पर करते हैं.
दोमट मिट्टी में नहीं होती दलहन की खेती : टिअर और भगहर गांव के किसान बताते हैं, कि हमारे यहां दोमट मिट्टी है. दोमट मिट्टी में दलहन की फसल नहीं लग पाती है, लेकिन हल्दी और अदरक की खेती इस मिट्टी में अनुकूल है. ऐसे में हम लोग व्यापक तौर पर हल्दी की खेती तो करते हैं. वैकल्पिक तौर पर अदरक की भी खेती बड़े पैमाने पर करते हैं. इस तरह हल्दी की खेती वाले गांव के रूप में हमारी पहचान है. बताते चलें कि एक किलो हल्दी की फसल उगाने में 40 रुपये तक खर्च होते हैं. बाजार में हल्दी 80-85 रुपये किलो बिक जाती है.