गयाः बिहार के मगध प्रमंडल के गया में पहली बार किसी किसान ने ड्रैगन फ्रूट की खेतीकी शुरुआत की है. अपने घर की छत पर ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू करने वाले किसान गोपाल शरण सिंंह (Farmer Gopal Sharan Singh) आज बड़े पैमाने पर ड्रैगन फ्रूट की पैदावार कर रहे हैं. बिहार में अपवाद स्वरूप कुछ स्थानों पर ही ड्रैगन फ्रूट की खेती होती है. ड्रैगन फ्रूट सेहत के लिए नायाब (Benefits Of Dragon Fruit) चीज मानी जाती है. इसकी खेती करना किसानों के लिए फायदे का सौदा है.
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बड़े पैमाने पर ड्रैगन फ्रूट की खेतीःकिसान गोपाल शरण सिंह मोहड़ा प्रखंड के जेठियन नया नगर गांव के रहने वाले हैं. यह इनका पैतृक गांव है. पूर्व में इन्होंने केंदुई स्थित आवास की छत से ड्रैगन फ्रूट का कलम लगाकर इसकी खेती शुरू की थी. अब इसकी खेती जेपीएल नया नगर गांव में एकड़ में हो रही है. इसकी खेती हर तरीके से लाजवाब है. बात करें सेहत की तो ड्रैगन फ्रूट सेहत के लिए फायदेमंद है तो दूसरी ओर इससे किसान की आमदनी भी काफी अच्छी होती है. पहले एक दो साल ठीक ठाक से गुजर गए तो फिर 30 से 40 सालों तक आमदनी होती रहती है.
कई बिजनेस में आजमाए थे हाथः गोपाल शरण सिंह ने कई तरह के बिजनेस में हाथ आजमाए. अच्छे रोजगार के अवसर के लिए देश के कई राज्यों में घूमे. वहीं, एक बार जब वे गुजरात गए तो वहां ड्रैगन फ्रूट की खेती को देखा. इसके बाद उनकी जिज्ञासा बढ़ी और उन्होंने फिर गया में आकर इसकी खेती शुरू कर दी. आज इनके रोजगार का एक बड़ा आधार ड्रैगन फ्रूट की खेती बन गई है. वर्तमान समय में ड्रैगन फ्रूट की ज्यादातर खेती भारत में कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में की जाती है. कुछ समय से इसकी खेती उत्तरप्रदेश में की जाने लगी है. यहां के कई किसान इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, अब गया में भी इसकी अच्छी खेती होने के आसार हैं.
घर की छत पर लगे ड्रैगन फ्रूट आधे एकड़ में है ड्रैगन फ्रूट की खेतीःकिसान गोपाल शरण बताते हैं, कि शुरुआत में घर की छत से इसकी शुरुआत की थी. सफलता मिली तो उन्हें काफी खुशी हुई और फिर इसकी खेती अपने पैतृक गांव जेठियन नया नगर में बड़े पैमाने पर शुरू कर दी. इसकी खेती के लिए अधिक तेज रोशनी या सूर्य का प्रकाश अच्छा नहीं माना जाता है. इसे उन इलाकों में आसानी से उगाया जा सकता है जहां का तापमान कम हो यानि जहां गर्मी कम पड़ती हो. इसकी खेती के लिए 50 सेमी वार्षिक औसत की दर से बारिश की जरूरत होती है. इस खेती की शुरुआत करने में वो तत्कालीन डीएम अभिषेक सिंह की पहल को भी एक मदद के रूप में मानते हैं.
इन्वेस्ट एक बार, प्रॉफिट बार-बारःगोपाल शरण ने बताया कि एक दफा अगर इन्वेस्ट किया जाए तो प्रॉफिट बार-बार होता है. ड्रैगन फ्रूट की खेती 2 साल के बाद आमद वाली हो जाती है और यह 30 से 40 वर्ष तक बगैर कोई बड़ी खर्च के अपने फल देते रहता है. बताते हैं कि इससे विदेशी शराब से लेकर दवा तक बनती है. इसके कई औषधीय गुण हैं. ये फल किसी भी बीमारी को जड़ से खत्म तो नहीं कर सकता है लेकिन उसके लक्षणों को कम करके आराम जरूर दिला सकते हैं. इसका सेवन ब्लक में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है इससे डायबिटीज होने का खतरा कम हो जाता है. इसके सेवन हृदय रोगियों के लिए फायदेमंद बताया गया है
"ड्रैगन फ्रूट काफी फायदेमंद है. यह एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी डायबिटीक, एंटी कैंसर और ब्लड रिलेटेड किसी भी समस्या में काफी कारगर है. यह सेहत अच्छी बनाए रखने और बीमारियों से लड़ने में रामबाण की तरह है. ये मूल रूप से दक्षिणी अमेरिका में पाया जाता है. इसकी खेती करने में शुरुआत में कुल 12 लाख का खर्च आता है, लेकिन इसके बाद यह 30 से 40 साल तक आमदनी का बड़ा जरिया बन जाता है"- गोपाल शरण सिंह, किसान
30 से 40 साल तक होती है आमदनीः ड्रैगन फ्रूट मूल रूप से दक्षिणी अमेरिका में पाया जाने वाला फल है. यह कैक्टस प्रजाति का है. साउथ एशिया में अब इसकी खेती ज्यादा होने लगी है. वियतनाम से इंपोर्ट होकर यह भारत आता है और यहां देश के कुछ राज्यों में इसकी डिमांड काफी है. बिहार में बहुत कम लोग ड्रैगन फ्रूट के बारे में ठीक से जानते हैं. बताते हैं कि टेक्निकल स्ट्रक्चर के साथ ढाई एकड़ यानि एक हेक्टेयर में इसकी खेती की शुरुआत में कुल 12 लाख का खर्च आता है, लेकिन इसके बाद यह 30 से 40 साल तक आमदनी का बड़ा जरिया बन जाता है. हालांकि इसे बनाए रखने के लिए पौधों का संरक्षण सही से करना पड़ता है.
उग्रवाद की समस्या से मिलती निजातःकिसान गोपाल शरण सिंह बताते हैं कि उन्होंने इसकी खेती शुरू करने के बाद अपने स्तर से यह प्रयास किया था कि गया जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू कराई जाए. क्योंकि एक बार जब कोई इसकी खेती करने लगेगा, तो उसकी आमद बढ़ेगी और फिर वह इसी पर निर्भर हो जाएगा. ऐसे में नक्सल प्रभावित इलाकों में बेरोजगारों को रोजगार मिलता, तो निश्चित तौर पर उग्रवाद की समस्या से निजात मिलती. हालांकि अभी समय है कि ड्रैगन फ्रूट की खेती को बढ़ावा देकर बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराया जा सकता है. ऐसा सरकार और प्रशासन अगर चाहे, तो कर सकती है.
सफल खेती के लिए प्रयासरत है आत्माःइस संबंध में आत्मा के निदेशक नीरज कुमार बताते हैं कि मगध प्रमंडल के गया जिले में पहली बार ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू हुई है. गया जिले के मोहड़ा प्रखंड के किसान गोपाल शरण सिंह के द्वारा इसकी खेती शुरू की गई है, जो पिछले कई सालों से इस की सफल खेती के लिए प्रयासरत थे. अब उन्हें सफलता मिली है और अच्छी आमदनी भी हो रही है. ये सेहत को बनाए रखने के लिए भी एक नायाब चीज है. कैंसर, हार्ट जैसी बीमारियों में इस फल का उपयोग कारगर होता है. गया जिले में वो ड्रैगन फ्रूट की खेती को बढ़ावा देने के लिए काफी प्रयासरत हैं और उद्यान विभाग से कुछ अनुदान की राशि भी देय हो रही है.
"गया में पहली बार ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू हुई है. ये आमदनी का बड़ा जरिया है. सेहत को बनाए रखने के और बीमारियों से लड़ने में लाभकारी है. इसको बढ़ावा देने के लिए हमलोग काफी प्रयास कर रहे हैं. उद्यान विभाग से कुछ अनुदान भी मिल रहे हैं, जो इस खेती को आगे बढ़ाने में मददगार होंगे"- नीरज कुमार, निदेशक, आत्मा