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ढोल मंजीरे की थाप पर देसी चईता, देखकर मजा आ जाएगा

मोतिहारी में 'चैता' लगभग समाप्त हो गया है. जिसको एक बार फिर से बंजरिया प्रखंड प्रमुख ने शुरू कराया है. जिसमें भगवान शिव और राधा कृष्ण के अलावा भागवान राम से संबंधित लोकगीत गाए जाते हैं.

चैतावर कार्यक्रम
चैतावर कार्यक्रम

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Published : Apr 3, 2021, 6:26 AM IST

मोतिहारी: भारतीय संस्कृति में मनोरंजन के लिए हिंदी मास के अनुसार, अलग-अलग लोक परंपराएं प्रचलित हैं. जिनमें से कुछ विलुप्त होने की कगार पर है, लेकिन कुछ कला प्रेमियों ने विलुप्त हो रहे लोक उत्सव और लोक गीतों को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू किया है. उसी लोक परम्पराओं में "चैतावर" भी है. लोक-जीवन के मनोभावों को अभिव्यक्ति देने वाले चैतावर के सुरीले गीतों को हिंदी महीने के "चैत्र मास" में गाया जाता है.

वहीं, पूर्वी चंपारण जिला में 'चैता' लगभग समाप्त हो गया है. जिसको एक बार फिर से जिले के बंजरिया प्रखंड प्रमुख और बीजेपी नेता ललन चौधरी ने शुरू कराया है. जिसमें भगवान शिव और राधा कृष्ण के अलावा भागवान राम से संबंधित लोकगीत गाए जाते हैं.

मोतिहारी में लोक गीतों का आयोजन हुआ.

चैतावर प्रतियोगिता का हुआ आयोजन
बंजरिया प्रखंड प्रमुख और बीजेपी नेता ललन चौधरी ने अपने दरवाजे पर चैतावर का आयोजन किया. जिसमें कई पंचायतों के चैता गाने वाले लोक कलाकारों को बुलाया गया था. ललन चौधरी के दरवाजे पर आयोजित चैतावर प्रतियोगिता को देखने और सुनने शहरी क्षेत्रों के अलावा आसपास के गांवों के काफी लोग पहुंचे हुए थे.

ढोल मंजीरे की थाप पर देसी चईता.

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इस मौके पर बंजरिया प्रखंड प्रमुख और बीजेपी नेता ललन चौधरी ने बताया कि पिछले तीन वर्षों से होली का उमंग खत्म होने के साथ चैत्र मास में चैतावर प्रतियोगिता का वह आयोजन करते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि विलुप्त हो रहे चैतावर को वह एक बार फिर से पुनर्जिवित करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि नई पीढ़ी को भारत की पारंपरिक संगीत के सांस्कृतिक विरासत से अवगत कराया जा सके.

लोक गीतों को सुनते लोग.

चैत मास में गाया जाता है चैतावर
लोक मान्यताओं के अनुसार, चैत्र मास को हिंदी कैलेंडर वर्ष के प्रथम महीना के रुप में माना जाता है. इस महीने में पौराणिक काल से ही बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरी क्षेत्रों में पारंपरिक वाद्य यंत्रों पर चैता गाया जाता रहा है, लेकिन आधुनिक संगीत के कानफाड़ू गीतों के धुन में चैता के भक्ति भावना के संग झलकते श्रृंगार के कोकिल स्वर गुम हो गए हैं. जिस परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास प्रखंड प्रमुख ने किया है.

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