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कीर्ति चक्र से सम्मानित शहीद कैप्टन दिलीप कुमार झा की वीरगाथा, जो युवाओं के लिए बनी प्रेरणास्रोत - Amrit Mahotsav

दरभंगा (Darbhanga) के वीर सपूत कैप्टन दिलीप कुमार झा (Dilip Kumar Jha) ने कश्मीर के पूंछ में पाकिस्तानी घुसपैठियों (Pakistani Infiltrators) के दांत खट्टे कर दिए थे. उन्होंने देश की सरहद की रक्षा करते हुए 2 अक्टूबर 2002 को हंसते-हंसते अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे. पढ़ें रिपोर्ट..

दरभंगा
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Published : Aug 15, 2021, 1:03 AM IST

दरभंगा: अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए देश के लाखों लोगों ने कुर्बानी दी थी, लेकिन आजादी के बाद नए दुश्मन भी पैदा हो चुके थे. अंग्रेज जाते-जाते भारत को सबसे बड़ा दुश्मन पाकिस्तान के रूप में दे गये. आजादी के बाद से अब तक पाकिस्तान से देश की सरहद की रक्षा करने में हजारों सैनिकों और आम लोगों ने अपनी जान दी है. इन्हीं में से एक थे दरभंगा (Darbhanga) जिले के हरिपुर गांव के कैप्टन दिलीप कुमार झा (Captain Dilip Kumar Jha).

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दिलीप कुमार झा 7वीं जाट रेजिमेंट के घातक दस्ते के कमांडर थे. कश्मीर के पूंछ में पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए 2 अक्टूबर 2002 को शहीद हो गए थे. भारत सरकार ने शहीद कैप्टन दिलीप कुमार झा को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया था. देश के इस वीर सपूत पर केवल मिथिला और बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश को गर्व है.

देखें रिपोर्ट

शहीद कैप्टन दिलीप कुमार झा के पिता नथुनी झा ने कहा कि दिलीप बचपन से ही पढ़ने-लिखने में तेज थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा कटिहार के एक स्कूल में हुई थी. उसके बाद वे मसूरी चले गए. वहीं, से उन्होंने आगे की पढ़ाई की और एनडीए परीक्षा की तैयारी की. उसके बाद भारतीय सेना के लिए चुने गए. बाद में उन्हें कैप्टन के रूप में प्रोन्नति मिली. दिलीप को भारतीय सेना के घातक दस्ते का कमांडर बनाया गया था और उनकी पोस्टिंग कश्मीर में पूंछ के इलाके में की गई थी.

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''उन्होंने पाकिस्तान की ओर से चलाए जा रहे छद्म युद्ध के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़ी और अपने कार्यकाल में 68 आतंकियों को मार गिराया था. अक्टूबर 2002 में जब वे सीमा पर तैनात थे, तो सीमा पर घुसपैठियों से लगातार मुकाबला कर रहे थे. लड़ाई के दौरान 2 दिनों के भीतर उन्होंने 23 आतंकियों को मार गिराया था. 2 अक्टूबर 2002 को रात में उन्होंने देश के लिए शहादत दे दी. अगली सुबह 6 बजे विंग कमांडर ने उन्हें दिलीप के शहीद होने की सूचना दी.''-नथुनी झा, शहीद कैप्टनदिलीप कुमार झा के पिता

शहीद होने के बाद कैप्टन दिलीप कुमार झा की अंत्येष्टि उनके पैतृक आवास के दरवाजे पर ही की गई थी. तब सेना की ओर से कई बड़े अधिकारी और बड़ी संख्या में जवान उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए उनके गांव आए थे. शहीद कैप्टन दिलीप कुमार झा के पिता नथुनी झा ने शहीद बेटे की याद में आदमकद की प्रतिमा लगाई और उनकी समाधि बनवाई. तत्कालीन विधान पार्षद नीलांबर चौधरी के सहयोग से शहीद कैप्टन दिलीप कुमार झा के गांव में एक शहीद द्वार बनवाया गया.

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नथुनी झा ने कहा कि दिलीप को उन्होंने मां और बाप दोनों का प्यार दिया था, क्योंकि उनकी मां का पहले ही देहांत हो चुका था. दिलीप की बटालियन के लोग उनकी हमेशा तारीफ करते थे. कम समय में दिलीप ने सेना में अपनी छाप छोड़ी थी. उन्होंने बताया कि दिल्ली जाकर वो तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस से मिले थे और उनसे आग्रह किया था कि दिलीप की पहली पुण्यतिथि पर उनकी आदमकद प्रतिमा का अनावरण करें. वादे के मुताबिक जॉन फर्नांडिस उनके घर आए और 2 अक्टूबर 2003 को दिलीप की समाधि पर उनकी आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया था.

इसके अलावा प्रखंड प्रमुख की ओर से उनके आवास पर एक संग्रहालय का निर्माण कराया गया. इस संग्रहालय में शहीद दिलीप से जुड़ी तस्वीरें, उनके मेडल और उनके यूनिफॉर्म संरक्षित हैं. वहीं, शहीद कैप्टन दिलीप कुमार झा के गांव हरिपुर की एक महिला अनुप्रिया ने कहा कि ''शहीद दिलीप कुमार झा न सिर्फ उनके गांव बल्कि पूरे मिथिला बिहार और देश के लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं.''

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हरिपुर गांव के ही पंकज कुमार ने कहा कि शहीद कैप्टन दिलीप कुमार झा इस गांव की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. गांव के युवा सुबह-सुबह उनकी प्रतिमा के दर्शन कर सेना में भर्ती होने के लिए दौड़ की प्रैक्टिस करते हैं. उनके मन में शहीद कैप्टन दिलीप कुमार झा की तरह देश के दुश्मनों से लड़ने का जज्बा होता है. वे इसके लिए कठिन परिश्रम करते हैं. 15 अगस्त और 26 जनवरी समेत हर राष्ट्रीय पर्व पर शहीद कैप्टन दिलीप कुमार झा की समाधि पर मेले जैसा माहौल होता है. यहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं.

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