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महामारी ने छीना रोजगार, अब बाढ़ का सितम, रेलवे ट्रैक के किनारे शुरू हुआ जिंदगी का सफर

दरभंगा, जिला बिहार का है. हां वही जिला, जहां की बहादुर बेटी ज्योति ने विदेश तक अपने मजबूत हौसले से पहचान बनाई. लेकिन आज बात उसकी नहीं होगी. आज बात उनकी होगी, जो जीने के लिए क्या कुछ नहीं कर रहे. पढ़ें और देखें ये पूरी रिपोर्ट...

ग्राउंड रिपोर्ट
ग्राउंड रिपोर्ट

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Published : Jul 18, 2020, 7:36 PM IST

Updated : Jul 18, 2020, 8:29 PM IST

दरभंगा:बिहार में एक तरफ कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है, तो वहीं बाढ़ का कहर भी बरप रहा है. ईटीवी भारत दोनों मामलों पर लगातार जन सरोकार कर रहा है. ऐसे में हम, जब ग्रामीण क्षेत्रों का रुख कर रहे हैं, तो हालात बड़े गंभीर नजर आ रहे हैं.

महाराष्ट्र के औरंगाबाद का केस, आपको याद होगा. अच्छे से याद होगा कि कैसे घर लौट रहे 16 प्रवासी मजदूर रेलवे ट्रैक पर ट्रेन की चपेट में आने के बाद अपनी जान गंवा बैठे थे. अब आज वर्तमान हालातों में ठीक वैसा ही डर दरभंगा से सामने आ रहा है. यहां बाढ़ पीड़ितों ने अपना नया आशियाना रेलवे ट्रैक के पास बनाया है.

दरभंगा से विजय कुमार श्रीवास्तव की रिपोर्ट

जलमग्न है गांव के गांव
शुक्रवार को केवटी के गोपालपुर में बागमती नदी का सुरक्षा बांध टूट गया. इसकी वजह से गोपालपुर समेत आसपास के गांवों में घरों में पानी घुस गया है. लोगों का सब कुछ डूब कर बर्बाद हो गया है. बाढ़ प्रभावित परिवार दरभंगा- सीतामढ़ी रेल लाइन के किनारे आशियाना बना रहे हैं. ग्रामीण बाढ़ के पानी में जान जोखिम में डाल कर मुसीबत से गृहस्थी का सामान जुटा रहे हैं. माल-मवेशी और बाल-बच्चों के साथ एक ही झोपड़ी में गुजर कर रहे हैं.

कुछ ऐसा है गांव का नजारा

नहीं मिली प्रशासनिक मदद
खास बात यह है कि प्रशासन की ओर से उन्हें कोई मदद नहीं मिली है. लोग खुद बांस-बल्ले और प्लास्टिक खरीद कर रहे हैं. ऊंचे स्थान की खोज में ये सभी रेलवे लाइन के किनारे आकर अपना आशियाना बना रहे हैं. ऐसे में डर सिर्फ इस बात का है कि रात-बिरात कोई ट्रेन की चपेट में न आ जाए.

रहने के लिए नया ठिकाना

इस बाबत दुखी चौपाल कहते हैं, 'बांध टूटने की वजह से उनके घर में पानी घुस गया है. बाल-बच्चों और परिवार को बचाने के लिए घर-द्वार छोड़ कर रेल लाइन के किनारे आना पड़ा. जब तक बाढ़ नहीं जाएगी यहीं पर आशियाना रहेगा. उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण कोई रोजगार भी नहीं मिल रहा है. हर साल इसी तरह बाढ़ आती है और वे लोग गांव छोड़ कर रेल लाइन के किनारे चले आते हैं. इसके अलावा उनके पास कोई चारा नहीं होता.'

अब यहीं बनेगा आशियाना

भर आती हैं आंखें
ईटीवी भारत से बात करते हुए जसिया देवी की आंखें डबडबा गईं. उन्होंने कहा कि बहुत तकलीफ से यहां रहना पड़ेगा. कितने दिन रहेंगे? इसका कोई ठिकाना नहीं है. महीना-दो महीना भी लग सकता है. उनके आंसू टपक पड़ते हैं.

मदद की आस में ग्रामीण
  • बुजुर्ग महिला कौशल्या देवी बाढ़ के पानी में डूबते-डूबते बची हैं. उन्होंने कहा कि बेटे-बहू ने उन्हें डूबने से बचाया और यहां लेकर आए हैं. उनके छोटे-छोटे पोते भी यहां खतरे के बीच रह रहे हैं.
  • स्थानीय भोला मंडल ने कहते हैं कि सरकार का कोई भी आदमी यहां देखने नहीं आया है. वे लोग चाहे जैसे रहें, भूखे मर जाएं, कोई पूछने वाला नहीं है.

चलाया जाएगा राहत कार्यक्रम, लेकिन कब?
अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए ईटीवी भारत संवाददाता ने तत्काल केवटी सीओ से बात की. उन्होंने कहा कि बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए कम्युनिटी किचन खोले जाएंगे. सीओ अजीत कुमार झा की मानें, तो बाढ़ राहत कार्य शुरू किया जा रहा है. लेकिन इन लोगों तक ये राहत कार्य कब तक पहुंचेगा, ये तो आने वाला वक्त बताएगा. फिलहाल, बिहार के कई जिलों से ऐसी ही तस्वीरें सामने आ रही हैं.

देखें गोपालगंज की ये रिपोर्ट :बुखार से तप रहा तन, ऊपर से बाढ़ का सितम, सरकार किधर हो तुम?

Last Updated : Jul 18, 2020, 8:29 PM IST

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