राज्य सरकार की ओर से चौथा कृषि रोड मैप बक्सर:राज्य सरकार के द्वारा1 अप्रैल से चौथा कृषि रोड मैप लागू किया जाएगा. इससे पहले ही बक्सर जिले के किसानों ने राज्य सरकार को आईना दिखाने की कोशिश की है. उन किसानों का कहना है कि जितने भी कृषि व्यवस्था के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की गई है. उनलोगों को भी जिले में सिंचित और असिंचित क्षेत्रों के बारे में जानकारी नहीं है. इसके बावजूद भी वे लोग किसानों के लिए कृषि रोड मैप तैयार कर रहे हैं. इससे पहले राज्य सरकार को वैसे किसानों की जनगणना करवानी चाहिए कि कितने किसान सरकार द्वारा जारी किे गे योजनाओं का लाभ उठा पा रहे हैं.
यह भी पढ़ें-Fourth Agriculture Road Map in Bihar : तीन कृषि रोड मैप की क्या रही उपलब्धि, क्या चौथे से बदलेंगे किसानों के हालात?
किसानों ने जताई नाराजगी:चौथा कृषि रोड मैप आने से पहले किसानों ने राज्य सरकार से कहा है कि जातीय जनगणना की तरह बिहार सरकार को किसानों की दुर्दशा के लिए भी जणगणना करवानी चाहिए ताकि सरकार यह जान सके कि आखिर किसान का बेटा किसान क्यों नहीं बनना चाहता है. इधर, बिहार में चौथा कृषि रोड मैप लागू होने वाला है. विभाग उसके लिए अंतिम रूप देने की तैयारी में जुटी है.
अप्रैल 2023 में चौथा कृषि रोड मैप की तैयारी:किसानों का कहना है कि नीतीश कुमार जब 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिए. उसके बाद 2008 में पहला कृषि रोडमैप लेकर आए थे. सीएम नीतीश ने 2012 में कृषि रोडमैप और 2017 में तीसरा कृषि रोडमैप लागू किए थे. अब अप्रैल 2023 में चौथा कृषि रोड मैप लागू करने की ओर बढ़ रहे हैं. इस चौथे कृषि रोड मैप से पहले ही किसानों ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए राज्य सरकार को आगाह किया है कि आजादी के 75 साल बाद भी जिस प्रदेश में किसानों को 266 रुपये की यूरिया मजबूरी में एक हजार में खरीदना पड़ता है. वहां किसान का बेटा किसान बनना कैसे पसंद करेगा.
74 प्रतिशत लोग है कृषि पर निर्भर: बिहार के 79.46 लाख हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है.राज्य के 74 प्रतिशत लोग अपने आजीविका के लिए खेती पर ही निर्भर है. राज्य के सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में कृषि का करीब 19 से 20% योगदान है. पशुधन का करीब 6-7 प्रतिशत योगदान है. उसके बाद भी किसान कर्ज के बोझ तले दबकर कराह रहे है.
2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत: बिहार में पहले कृषि रोडमैप के लिए 17 फरवरी 2008 को किसान पंचायत का आयोजन किया गया था. पहले कृषि रोड मैप में सरकार की ओर से बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश की गई थी. इसमें सफलता भी मिली. चावल और आलू के उत्पादन में मुख्यमंत्री का गृह जिला नालंदा के किसानों ने नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए विश्व रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया था.
2012 में दूसरे कृषि रोड मैप का आरंभ:दूसरा कृषि रोड मैप 2012 में लागू किया गया था. 2011 में नीतीश सरकार ने 18 विभागों को एक साथ शामिल कर कृषि कैबिनेट के गठन को मंजूरी दिया था. दूसरे कृषि रोड मैप पर सरकार का पूरा फोकस किसानों की उत्पादन शक्ति बढ़ाने के लिए था.था. इसमें सफलता हासिल करते हुए कई पुरस्कार भी हासिल किए. 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला, 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त हुआ. वहीं 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार से बिहार को नवाजा गया.
2017 में तीसरा कृषि रोड मैप लागू:राज्य सरकार में तीसरा कृषि रोडमैप 2017 में लागू किया गया. सरकार के द्वारा तीसरा कृषि रोड मैप में ऑर्गेनिक खाद पर जोर दिया. इस तरह से धान अधिप्राप्ति का रिकॉर्ड बन गया. किसानों के लिए सरकार की ओर से खेतों तक बिजली पहुंचाने के लिए फीडर लगाई गई. मछली और दुग्ध उत्पादन के लिए जोर दिया गया. इस कारण काफी आगे बढ़ने लगा. आज मछलियों के लिए दूसरे राज्यों से आयात कम पड़ गया है. इसके अलावे बाढ़ और सूखाड़ वाले क्षेत्र में वैकल्पिक फसलों पर भी जोर दिया. राज्य सरकार खेत तक पानी पहुंचाने के लिए 2025 तक लक्ष्य तय किया है. जबकि तीन कृषि रोड़ मैप को पूरा करने के लिए किसानों के सामने समस्याओं की लंबी सूची है. इसके लिए फसल का उचित दाम भी दिया जा रहा है. किसानों को सही समय पर बीज और खाद प्राप्त हो रहा है. आलम यह है कि आजादी के 75 साल बाद भी किसान 266 रुपये का उर्वरक एक हजार रुपये में खरीदने के लिए विवश है.
तीन कृषि वैज्ञानिकों से बात:राज्य सरकार के द्वारा लाये गए तीनों कृषि रोड मैप से किसानों के आर्थिक स्थिति में कितना बदलाव हुआ है. इसकी जानकारी के लिए जिला कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक, डॉक्टर रामकेवल, डॉक्टर हरिगोविंद जायसवाल, डॉक्टर मांधाता सिंह से बात की. कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर रामकेवल ने किसानों को सुझाव देते हुए कहा कि वह जलवायु परिवर्तन के अनुसार अपनी खेतों में फसल लगाए. उन्हें कम खर्च में अधिक मुनाफा होगा. किसानों को मशीनी युग तकनीक पर आधारित वैज्ञानिक तरीके से खेती करें. अधिकांश किसान लंबी अवधि के प्रजाति के धान का फसल लगाए. तब रवि की फसल समय से नहीं लग पायेगा. ऐसे में किसानों को जलवायु और सही समय का ज्ञान होना आवश्यक है.
डॉक्टर हरिगोविंद जायसवाल ने बताया बहुत सारे किसान अभी भी पुरानी परंपरा से ही कृषि का कार्य कर रहे हैं. जिले के किसी भी कोने से जब किसी किसान के द्वारा कोई फसल से संबंधित समस्या बताई जाती है. हमलोग सभी संसाधनों का उपयोग कर उस किसान के समस्या को दूर करते है.
वैज्ञानिक डॉक्टर मान्धाता सिंह ने बताया कि किसानों के लिए तीन बातें सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं. वैज्ञानिक मांधाता सिंह ने बताया कि उत्तम बीज का उपयोग करें. दूसरा जलवायु के अनुसार ही फसल लगाए. तीसरा किसानों को उत्पादन बेचने के लिए मंडी उपलब्ध किए जाए. इसके लिए किसान समूह बनाकर अपने उत्पादन को मंडी में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाने गए.
किसानों के परिवार की आय:सिमरी प्रखंड के किसानों ने बताया कि आज 1 रूपये में 2 किलो टमाटर के खरीददार नही मिल रहे हैं. कई खेतों में टमाटर और गोभी खेतो में सड़ रहे हैं. राज्य सरकार जमीन पर ट्रांसपोर्ट की सुविधा, मंडी उपलब्ध कराने के बजाए केवल कागजों में दावे करती है. जिस प्रदेश के किसानों के कुल परिवार की आय 7542 रुपये हो , वहां के किसान इतने पैसे में बूढ़े मां बाप की दवाई कहां से करा सकेगा. उनके बेटे-बेटियों की पढ़ाई लिखाई, शादी कैसे होगा. वे लोग कैसे देख सकते हैं कि हम कैसे सपना देखे कि खेती पर निर्भर किसान की बेटा-बेटियां आईएएस और आईपीएस करेंगे. सरकार ने अपना कोई भी वादा पूरा नहीं किया. यहीं कारण है कि खेतिहर मजदूरों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है. कृषि कार्य को छोड़कर शहरों में मजदूरी करने के लिए पलायन कर रहे है.
गौरतलब है कि राज्य सरकार बिहार का एक व्यंजन हर भारतीय के थाली में पहुंचे. पिछले डेढ़ दशक से यह प्रयास कर रही है. उत्पादन में लगातार इजाफा भी हो रहा है. लेकिन किसानों को मिलने वाली सुविधा ही जब किसानो तक नही पहुंचेगी तब अन्नदाताओं की आर्थिक स्थिति कैसे सुधरेगी. पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने कहा था हमारा विभाग चोर है. हम चोरों के सरदार है. और हमारे उपर भी चोर बैठा है. मंत्री की यह बातें बिहार के मुखिया को नागवारा गुजरा और मात्र डेढ़ महीने में ही उन्हें कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.