बक्सरः देश एवं प्रदेश को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए भारत सरकार और राज्य सरकार जनकल्याण की कई योजनाएं चला रही है. वहीं बक्सर में कभी लापरवाही के कारण तो कभी दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी के कारण ऐसे जन सरोकार की योजनाएं विफल हो रही हैं. इससे आम लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. आए दिनों जब सरकार, जनकल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा करना शुरू करती है तो अधिकारी कागजी कोरम पूरा कर सरकार के सामने दस्तावेज उपस्थित कर देते हैं. और जमीनी हकीकत कुछ और ही रहती है.
20 वर्षों से एक ही जगह पर जमे हैं कई डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी
लंबे समय से जिले के सदर अस्पताल में कई डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी जमे हुए हैं. पदस्थापना के बाद आज तक तबादला नहीं हो पाया. यहां बिना लाइसेंस के 3 हजार 1 सौ 22 छोटे-बड़े निजी नर्सिंग होम चल रहे हैं. आलम यह है कि इस जिला में कम पढ़े-लिखे लोग भी निजी नर्सिंग होम खोलकर इंसानों का ऑपरेशन करते हैं. जब ऑपरेशन थियेटर में मरीज की मौत हो जाती है तो नर्सिंग होम को दूसरे इलाके में शिफ्ट कर लेते हैं.
15-20 बच्चे आते थे प्रत्येक दिन
वर्ष 2011 में कुपोषित बच्चों के देखभाल और इलाज के लिए जिला के सदर अस्पताल में लाखों रुपए की लागत से पोषण पुनर्वास केंद्र की स्थापना की गयी थी. जहां प्रत्येक दिन 15-20 कुपोषित बच्चे आते थे. उनका देखभाल कर उन्हें सामान्य बच्चों की श्रेणी में लाने के लिए पौष्टिक आहार के साथ ही कई तरह की सुविधाएं दी जाती थी. उन बच्चों को 20 दिनों तक इस एनआरसी में रखकर उनकी पूरी देखभाल की जाती थी. अंतिम दिन जब बच्चे घर जाते थे तो उनके परिजन को विभाग की ओर से प्रतिदिन 150 रुपये के हिसाब से सहयोग राशि भी दी जाती थी.