बक्सर:बिहार में सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) को सुशासन बाबू कहा जाता है. सुशासन का अर्थ होता है अच्छा शासन. लेकिन बिहार में तेजी से बढ़ते अपराध के बीच नीतीश सरकार के सुशासन की पोल खुलती नजर आ रही है. प्रदेश में बढ़ते अपहरण, लूटपाट, हत्या, छेड़खानी, महिलाओं के साथ दुष्कर्म (Molesting Women In Bihar) की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है. अपने ही प्रदेश, जिले व शहर में बेटियां सुरक्षित नहीं है. यही कारण है कि एक बार फिर बेटियां घर से बाहर निकले से भी डरने लगी है. मामला 12 नवंबर 2021 को बिहार के बक्सर जिले का है.
मन में सरहदों की हिफाजत करने का जज्बा लिए 19 वर्षीय चंपा कुमारी ने सेना में बहाल होने के लिए अपने ही गांव के बाहर सड़कों पर दौड़ का अभ्यास कर रही थी. तभी पहले से घात लगाकर बैठे चार दरिंदे उसकी अस्मत लूटने के लिए उसपर टूट पड़े. लेकिन जब बहादुर बेटी अकेले ही चारो दरिन्दों पर भारी पड़ने लगी, तो दरिन्दों ने चाकू मारकर उसकी एक आंख फोड़ डाली. जब पीड़िता की मां ने हल्ला करना शुरू की, तो सभी वहां से भाग निकले. घटना के तीन महीने से अधिक का समय गुजर जाने के बाद भी, पुलिस का हांथ खाली है. अस्पताल की बेड पर न्याय की उम्मीद में जीवन से संघर्ष कर रही बेटी अब सता और सुशासन से ना उम्मीद होते जा रही है.
इस घटना की जानकारी देते हुए अस्पताल के बेड पर इलाजरत चंपा कुमारी ने बताया कि वह बेहद ही गरीब दलित परिवार से आती है. पिछड़ी जाति से होने के बाद भी, माता- पिता ने गांव समाज का बिना प्रवाह किये, अपना सब कुछ बेचकर मुझे पढ़ाया. सैन्य भर्ती की शारीरिक परीक्षा में मुझे शामिल होना था. जिसके लिए गांव के ही सड़कों पर दौड़ का अभ्यास कर रही थी. 12 नवंबर को दौड़ ही रही थी कि, पहले से घात लगाकर बैठे, चक्की ओपी के लक्ष्मण डेरा निवासी बब्लू पासवान और उसके तीन दोस्त मुझपर टूट पड़े, मैं अकेले ही चारों से लड़ती रही. उसी दौरान बब्लू पासवान ने चाकू से मेरे आंख, गर्दन, गला पर कई बार वॉर कर मेरी आंख फोड़ डाली. महीनों बाद जब मुझे होश आया तो मैं अस्पताल की बेड पर पड़ी थी. अब इस प्रदेश में कोई भी बेटी इस तरह की सपना नहीं देखेगी. 3 महीने से अधिक समय गुजर गया. लेकिन पुलिस अब तक उन दरिन्दों को नहीं पकड़ पाई.
इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी चंपा की मां ने बताया कि, प्रत्येक दिन की तरह बेटी दौड़ का अभ्यास कर रही थी. और मैं बैठी हुई थी, तभी बेटी की चिखने, चिल्लाने की आवाज आई. जब मैं वहां पहुंची तो वह खून से लथपथ जमीन पर गिरी हुई थी. मुझे देख चारों दरिंदे वहां से भागने लगे. मदद के लिए जब मैं चिलाना शुरू की तो, आसपास के लोग आए और उसे, पैसे के अभाव में जिले के सदर अस्पताल में हम लोगों ने उसे भर्ती कराया. जहां उसे देखने के लिए भी कोई नहीं आता था. एक दिन भगवान के रूप में, विश्वामित्र हॉस्पिटल के डॉक्टर राजीव झा, जब सदर अस्पताल में किसी काम के लिए आये हुए थे तो उनकी नजर पड़ी और वह हमारी बेटी को अपने अस्पताल में लेकर आये.
चंपा की मां ने बताया कि डॉक्टर राजीव हमारे खाने-पीने से लेकर बेटी की दवाई, फल, दूध सब कुछ वही देते हैं. तीन महीने के अथक प्रयास कर उन्होंने मेरी बेटी का जान बचाया है. लेकिन अफसोस केवल इस बात की है कि मेरी बेटी का एक आंख फूट गया और अब वह सेना में बहाल नहीं हो पाएगी. इतना कुछ होने के बाद ना तो कोई प्रशासनिक अधिकारी और ना ही दलित के नाम पर सियासत करने वाले कोई नेता, हमलोगों का हाल जानने के लिए आये. गरीब और दलित तो केवल चुनावी मुद्दे हैं. और अभी बिहार में चुनाव तो है नहीं.