बक्सर: प्रतिभा किसी पहचान की मोहताज नहीं होती है. वह अपनी कदमों की आहट से अपने होने का एहसास करवा ही लेती है. अपनी चमक से एक न एक दिन दुनिया को चकाचौंध कर ही देती है. कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है, बक्सर में जहां एक महिला अपनी कलाकृतियों से लोगों को इस कदर प्रभावित कर रही है कि देखने वालों के मुंह से बरबस निकल जा रहा है वाह क्या बात है.
बचपन से ही चित्रकारी का शौक
मुफ्फसिल थाना क्षेत्र अंतर्गत कमरपुर गांव की रहने वाली विनीता राय दो बेटियों की मां हैं. बड़ी बेटी लावण्या 10वीं में तो, छोटी कक्षा 4 में पढ़ रही हैं. लावण्या ने बताया कि मम्मी को बचपन से ही चित्रकारी का शौक रहा है.
बचपन से ही है चित्रकारी का शौक "नाना ने बताया कि जब मम्मी डेढ़ -दो साल की थींतो, परिवार वालों को लगा कि वो ना बोल सकती है और ना ही सुन सकती है. ऐसे में सभी को बड़ी मायूसी हुई. लेकिन कहा जाता है कि ईश्वर कुछ लेता है और बहुत कुछ देता भी है. मां को उनकी खूबसूरत और आकर्षक चित्रकला के लिए प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत भी किया जा चुका है"- लावण्या, बेटी
रद्दी वस्तुओं से बनाई बेहद उपयोगी चित्रकला रद्दी वस्तुओं से बेहद उपयोगी
बोलने और सुनने में असमर्थ विनीता का मन चित्रकला में खूब लगने लगा. फलतः परिजनों ने चित्रकला को ही विनीता के करियर के रूप में देखा. सुनीता के हाथों में वो हुनर है कि मशीन भी फेल हो जाए. घर की रद्दी वस्तुओं से बेहद उपयोगी और खूबसूरत सामान बना डालती हैं. उंगलियों पर नियंत्रण इतना कि कैनवास पर चल रहा ब्रश थोड़ा सा भी इधर उधर न जा पाये.
तीसरी कक्षा तक ही हुई पढ़ाई
30 अगस्त 1982 को जन्मी विनीता की शिक्षा-दीक्षा मात्र तीसरी कक्षा तक ही हो पाई. विनीता का मन चित्रकला में खूब रमा. हालांकि 2007 में मुफ्फसिल थाना क्षेत्र में गोविंदपुर के रहने वाले बलिराम राय से विवाह के पश्चात समयाभाव के कारण अपनी इस कला से दूर होती गईं. लेकिन एक बार फिर विनीता को उनकी लगन चित्रकला के पास लाई है और वे अपनी लगन और मेहनत की बदौलत पेंटिंग की दुनिया में एक मुकाम हासिल करना चाहती हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर किया जा चुका है पुरस्कृत ये भी पढ़ें:जमुई: नौकरी तलाशने के बजाय खेती का रास्ता अपना रहे युवा किसान, आर्थिक स्थिति को बना रहे मजबूत
युवाओं के लिए प्रेरणा
विनीता आज के युवाओं और युवतियों के लिए एक प्रेरणा हैं. खास कर ऐसे लोगों के लिए जो साधन के अभाव का रोना रोते हैं. विनीता एक उदाहरण है कि जिनके अंदर भी कार्य करने की लगन और मेहनत करने का जज्बा होगा, उसके लिए न साधन का अभाव बाधक बन सकती है और न ही दिव्यांगता.