औरंगाबाद:भारतीय संस्कृति में सूफी संतों का प्रभाव हमेशा से रहा है. सूफी संतों के गुजर जाने के बाद उनके मजार पर मेला लगाने की परंपरा भी सैकड़ों वर्षों से चलती आ रही है. जिले में ऐसा ही एक मजार स्थित है जहां हर साल 2 दिवसीय उर्स मेला का आयोजन होता है.
जिले के गोह प्रखंड के अमझर शरीफ में दादा सैयदना साहब कादरी बगदादी का ऐतिहासिक मजार स्थित है. जहां पिछले 501 वर्षों से लगातार उर्स का आयोजन होता आ रहा है.
प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है पौराणिक मजार
उर्स का आयोजन न सिर्फ बिहार में प्रसिद्ध है बल्कि झारखंड, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बंगाल, छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों से लाखों की संख्या में लोग अमझर शरीफ पहुंचते हैं. लेकिन प्रशासन की ओर से यहां न ही किसी तरह की धर्मशाला का निर्माण कराया गया है, न ही कोई दूसरी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं. सूफी संत का यह पौराणिक दरगाह प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है.
क्या कहता है इतिहास?
बताया जाता है कि सैयदना कादरी धर्म प्रचार के लिए 1442 ई. में बगदाद से हिंदुस्तान आए थे. यहां उन्होंने मौजूदा अमझर शरीफ में रुककर अपना आशियाना बनाया था. उसके बाद उन्होंने वहां से इस्लाम धर्म का प्रचार शुरू किया. फिर लोग उन्हें सूफी संत के नाम से जानने लगे. वहीं, अमझर शरीफ में रहते हुए 1517 ई. में उनका निधन हो गया. उनके निधन के एक साल बाद से ही उनकी कब्र पर उर्स का आयोजन होने लगा और तब से लेकर अब तक ये आयोजन होता रहा है. इसलिए ये पौराणिक दरगाह खासा महत्व रखता है.
अक्टूबर में मनाया जाएगा उर्स
बता दें कि उर्स का आयोजन इस्लामिक तिथि के अनुसार सैयदना कादरी की मृत्युतिथि के दिन किया जाता है. यह तारीख साल के किसी भी महीने में पड़ सकती है. इस बार उर्स की ये तारिख अक्टूबर महीने में पड़ने की संभावना है.