भागलपुर:कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी पद्धति की खोज की है, जिसके माध्यम से बिना मिट्टी के फल, सब्जी और हरे चारे का उत्पादन किया जा रहा है. इस विधि को हाइड्रोपोनिक कहते हैं. इस विधि से हरा चारा उत्पादन के लिए भागलपुर के बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर में प्लांट लगाए जाएंगे. इसके माध्यम से भागलपुर के अलावा कृषि विश्वविद्यालय से जुड़े अन्य जिलों के महाविद्यालय के संबंधित किसान या उद्यमी प्रशिक्षण लेंगे.
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बिना जमीन के खेती
इस पद्धति से खासकर उन पशुपालकों को काफी लाभ होगा, जिनके पास अपनी जमीन नहीं है और हरे चारे के लिए उन्हें काफी दूर जाना पड़ता है. जिसमें समय और पैसा भी खर्च करना पड़ता है. ऐसे पशुपालकों के लिए ये विधि वरदान साबित होगी. ये अनुसंधान किसानों के लिए समृद्धि का द्वार भी खोलेगा.
पशुपालकों को होगा फायदा
बिहार में 2 लाख 72 हजार से भी अधिक पशुपालक हैं. कुल कृषि क्षेत्र के 0.21 फीसदी में ही हरे चारे का उत्पादन होता है. इस विधि से पशुपालकों को काफी लाभ होगा. बता दें कि हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में 2 मीटर ऊंचे एक टावर में लगभग 35 से 40 पौधे उगाए जा सकते हैं. इसमें 1 लाख तक में लगभग 400 पौधे वाले टावर खरीदे जा सकते हैं. अगर इस सिस्टम को अच्छे से इस्तेमाल किया जाए तो इसमें सिर्फ बीज और पोषक तत्व का ही खर्च पशुपालकों को उठाना पड़ेगा.
हाइड्रोपोनिक्स विधि से खेती
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से लगे पौधे को मौसम की मार से भी बचाना जरूरी होता है. इसके लिए नेट सेड या पॉली हाउस की आवश्यकता भी होती है. इस तकनीक से कंट्रोल्ड एनवायरमेंट में खेती कर सकते हैं. इसके लिए अधिकतर किसान ऐसी सब्जियां उगाते हैं, जिनकी कीमत बाजार में अधिक है. हाइड्रोपोनिक्स तकनीक को सही से उपयोग किया जाए, तो इससे अच्छा मुनाफा भी हो सकता है. इस तकनीक से महंगे फल और सब्जियों के साथ-साथ हरा चारा भी उगाकर बाजार में बेचा जा सकता है.
मवेशियों के लिए हरे चारे की खेती
कृषि वैज्ञानिक डॉ.संजीव कुमार ने बताया कि इसे हाइड्रोपोनिक तकनीक कहते हैं. इस विधि से बिना मिट्टी के मवेशियों के खाने के लिए हरे चारे के अलावा सब्जी और फल भी उगाए जा सकते हैं. इस विधि से फसल उगाने के लिए बीएयू कृत्रिम तापमान वाला शेड बनाया जाएगा और उस शेड में प्लास्टिक की ट्रे में करीब 1 किलो अंकुरित बीज डालने पर 1 सप्ताह में 7 से 8 किलो हरा चारा तैयार हो जाएगा. इसके लिए बहुत जल्द ही मॉडल तैयार हो जाएगा.
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''हाइड्रोपोनिक तकनीकी में फसल की जड़ें ट्रे में एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं. जिससे पौधे खड़े रहते हैं. छोटे पशुपालक प्रतिदिन 2 से ढाई किलो चारे का उत्पादन किया जा सकेगा. पहली ट्रे का चारा समाप्त होते ही दूसरी ट्रे में फसल तैयार हो जाएगी. ये रीसाइक्लिंग होते रहेगा. दूसरे ट्रे की फसल काटते वक्त पहले ट्रे की फसल तैयार होने लगेगी''- डॉ.संजीव कुमार, कृषि वैज्ञानिक