बेगूसराय: आज रामधारी सिंह दिनकर की जन्मतिथि है. बिहार के बेगूसराय जिले के रहने वाले रामधारी सिंह दिनकर हिंदी भाषा के प्रमुख रचनाकारों में से एक हैं. उनकी कविताओं ने आजादी के पहले अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देशवासियों की आवाज बुलंद की. यहां तक कि दिनकर आजादी के बाद सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुक्मरानों की गलत नीतियों का भी विरोध करने से नहीं चुके.
यही कारण है कि उन्होंने पंडित नेहरू के खिलाफ देश की संसद में कविता सुनाई थी, जिससे भूचाल आ गया था. उनके इन्हीं गुणों की वजह से उन्हें राष्ट्रकवि का दर्जा हासिल हुआ था.
विद्यापति की भूमि पर उनके बाद बड़े विद्वान
दिनकर से जुड़ी कई यादों को अपने दर्शकों तक पहुंचाने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने बिहार के बेगूसराय जिले में उनके पैतृक गांव सिमरिया का दौरा किया. वहां कुछ ऐसे भी ग्रामीणों से मुलाकात की जो राष्ट्रकवि के जीवन काल में उनके खास करीबी रहे थे. उन्हें अपने जीनव में कवि और उनकी रचनाएं खुद उनकी जुबानी सुनने का मौका मिला. ग्रामीण रामाशीष सिंह बताते हैं कि दिनकर का जन्म बेगूसराय के लिए अभूतपूर्व था. विद्यापति की इस भूमि पर उनके बाद अगर किसी विद्वान ने जन्म लिया तो वह रामधारी सिंह दिनकर थे.
कविता सुनने के लिये लोगों की लगती थी भीड़
कवि दिनकर के करीबी लोग कहते हैं कि वे ज्यादातर वे घर पर नहीं रहते थे. राज्यसभा सदस्य बनने के बाद उनका ज्यादातर समय दिल्ली में ही बीतता था. इसके बाद भी जब भी वे गांव आते, तो दूर-दराज के गांव और जिलों से हजारों की संख्या में लोग उनके घर इकट्ठा होते थे. सब की एक ही मांग होती थी की दिनकर कोई एक कविता सुना दें और लोग तब तक उठकर नहीं जाते थे जब तक उनकी जुबानी कोई कविता या दोहा न सुन लें.
स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे रामधारी सिंह दिनकर
राष्ट्रकवि को सुनने का मौका जिन्हें मिला उन्होंने अपनी यादें साझा करते हुए बताया कि रामधारी सिंह दिनकर स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे. लेकिन जब बात देश के हित-अहित की आती थी तो वह बेबाक टिप्पणी करने से कतराते नहीं थे. आजादी के पहले भी उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए वीर रस की कविताएं और ग्रंथ लिखे, जिससे प्रेरणा लेकर आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानियों में जोश भर गया.
'सीढ़ियां चढ़ते हुए नेहरू के पैर लड़खड़ा तो...'
एक बार दिल्ली में हो रहे कवि सम्मेलन में पंडित नेहरू पहुंचे. सीढ़ियां चढ़ते हुए उनके पैर लड़खड़ा गए तो दिनकर ने उन्हें संभाला. नेहरू ने उन्हें धन्यवाद कहा तो इस पर दिनकर ने कहा, 'जब जब सत्ता लड़खड़ाती है तो सदैव साहित्य ही उसे संभालती है.'
जब नेहरू को भरी संसद में अपनी कविता से लगाई लताड़
रामधारी सिंह दिनकर ने ये तीन पंक्तियां पंडित जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ संसद में सुनाई थी, जिससे देश में भूचाल मच गया था. दिलचस्प बात यह है कि राज्यसभा सदस्य के तौर पर दिनकर का चुनाव पंडित नेहरु ने ही किया था. इसके बावजूद नेहरू की नीतियों की मुखालफत करने से वे नहीं चूके.
"देखने में देवता सदृश्य लगता है