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बेगूसराय : 13 साल से छठ पूजा कर रही जमीला, कायम की सामाजिक सौहार्द की मिसाल

बेगूसराय की जमीला कहती हैं कि विश्वास से बढ़कर दुनिया में कुछ नहीं है. आस्था और विश्वास है, तभी तो लोग पत्थर को देवता के रूप में पूजते हैं. मैं 13 साल से इस पर्व को मना रहीं हूं. पढ़ें पूरी खबर..

बेगूसराय में छठ पूजा
बेगूसराय में छठ पूजा

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Published : Nov 21, 2020, 4:46 PM IST

बेगूसराय : बिहार में लोक आस्था का महापर्व छठ शनिवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद किए गए पारण के साथ ही समाप्त हो गया. ईटीवी भारत ने इस महापर्व के अलौकिक संगम की तस्वीरें आपको दिखाई. अब हम आपको गंगा-जमुनी तहजीब से जुड़ी एक मुस्लिम परिवार के बारे में बताने जा रहे हैं. जो एक दो साल से नहीं, बल्कि 13 सालों से छठ पूजा कर रहा है.

2008 में मां छठी से मांगी गई मन्नत पूरी होते ही जमीला खातून ने व्रत रखना शुरू किया. जो आज तक अनवरत जारी है. बेगूसराय के छौड़ाही प्रखंड के सिहमा गांव निवासी जमीला और उसका परिवार पूरे विधि विधान के साथ इस पर्व को मनाता है. इस बार ये उनका 13वां छठ महापर्व था, जिसे उन्होंने पूरी आस्था के साथ मनाया.

सामाजिक सौहार्द की मिसाल
छठ को किसी धर्म के बंधन में बांध कर नहीं रखा जा सकता. आस्था, विश्वास और सामाजिक सरोकार के महापर्व को मनाते हुए जमीला और उनका परिवार इसे चरितार्थ करता है. सामाजिक सौहार्द की मिसाल बनी जमीला नहाय-खाय, खरना और संध्या अर्घ्य, प्रात: कालीन अर्घ्य को पूरे विधि विधान से करती हैं. इस काम ने उनके परिवार के सदस्य ही नहीं, पड़ोसी भी उनका पूरा साथ देते हैं. गांव भर की एकता देखते ही बनती है.

देखें तस्वीरें :बिहार में छठ पूजा का अलौकिक संगम

जमीला कहती है, 'विश्वास से बढ़कर दुनिया में कुछ नहीं है. आस्था और विश्वास है, तभी तो लोग पत्थर को देवता के रूप में पूजते हैं. 2008 में घर के सभी लोग बीमार रह रहे थे, मजदूरी भी ठीक से नहीं मिल पाती थी. बच्चों के पालन-पोषण पोषण और विवाह की चिंता से परेशान थी. इसी दौरान छठ के समय गांव में लोगों से सुना कि छठी मईया सबके दुख दर्द दूर करतीं हैं. फिर गया हमने भी माई से मन्नत मांगी. पहली छठ पूजा करने के बाद हमारे परिवार को बीमारियों से छुटकारा मिल गया. हमें मजदूरी भी मिलने लगी.'

जमीला ने बताया कि वो 13 साल छठ पूजा पूरे नियम-निष्ठा के साथ कर रही है. उनके मजहब के लोग भी उनके छठ व्रत को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और सहयोग करते हैं. जमीला कहती हैं कि वो आगे भी इस पर्व को करेंगी और अपनी पुत्रवधु को भी इसके लिए प्रेरित करेंगी.

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