बेगूसरायः लोक आस्था कामहापर्व छठ के समापन होने के साथ ही गुरुवार से मिथिला का प्रसिद्ध लोक पर्व सामा चकेवा (Sama Chakeva) शुरू हो गया है. यह पर्व भाई बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलने वाले इस लोक पर्व के दौरान महिलाएं सामा चकेवा की मूर्तियों (Statues of Sama Chakeva) के साथ सामूहिक रूप से गीत गाती हैं.
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इस लोक पर्व को लेकर बरियारपुर पश्चिमी, मिर्जापुर, बाड़ा, चलकी, दौलतपुर, मेघौल, मटिहानी, बरियारपुर पूर्वी, तेतराही, योगीडिह, चकवा, खोदावन्दपुर, मसुराज, तारा, सागी सहित बेगुसराय जिला के ग्रामीण इलाकों में काफी उत्साह है. गुरुवार को सामा- चकेवा की मूर्तियों को खरीदने के लिए दिनभर महिलाओं और लड़कियों की भीड़ बाजार में देखी गयी. सामा- चकेवा की मूर्तियां बाजार में 40 से 150 रुपये तक खरीदी गईं.
कुम्हारों के यहां सामा चकेवा की मूर्ति की खरीददारी करने में युवतियों की भीड़ लगी रही. मूर्ति खरीदने के बाद लड़कियों ने बताया कि रात में अपने दरवाजे पर सामुहिक रुप से सामा चकेवा की लोक गीत और नृत्य का उत्सव होगा.
मान्यता है कि सामा भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री और सांब पुत्र थे. सामा को घूमने में मन लगता था. इसलिए वह अपनी दासी दिहुली के साथ वृंदावन में जाकर ऋषियों के साथ खेलती थी. यह बात दासी को रास नहीं आयी. उसने सामा के पिता से इसकी शिकायत कर दी.आक्रोश में आकर कृष्ण ने उसे पक्षी होने का श्राप दे दिया. इसके बाद सामा पक्षी का रूप लेकर वृंदावन में रहने लगी. इस वियोग में ऋषि- मुनि भी पक्षी बनकर उसी जंगल में विचरण करने लगे.
कालांतर में सामा के भाई सांब अपनी बहन की खोज की तो पता चला कि निर्दोष बहन पर पिता के श्राप का साया है. उसके बाद उसने अपने पिता की तपस्या शुरु कर दी. भगवान श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर नौ दिनों के लिए उसके पास आने का वरदान दिया. सामा ने उसी दिन से अपने भाई के दीर्घायु की कामना लेकर बहनों को पूजा करने का आशीर्वाद दिया. सामा चकेवा के गीतों से मिथिलांचल के साथ-साथ बेगूसराय इस क्षेत्र में उत्सव का माहौल है.
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