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कैदियों को डिजिटल साक्षर बनाने की पहल, देश में पहली बार बांका जेल से हुई शुरुआत

भारत सरकार के सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत संचालित प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण अभियान (PMGDISHA) के तहत बांका मंडल कारा देश का पहला जेल बन गया है, जहां प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता की शुरुआत हुई.

बांका मंडल कारा में डिजिटल साक्षरता की हुई शुरुआत
बांका मंडल कारा में डिजिटल साक्षरता की हुई शुरुआत

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Published : Jul 23, 2021, 8:25 AM IST

बांका: देश में बीते कुछ वर्षों से डिजिटल इंडिया (Digital India) का अभियान चल रहा है. निश्चित रूप से इस प्रयास ने गांव-गांव में डिजिटल क्रांति (Digital Revolution) लाई है. अब इस अभियान से एक नया अध्याय जुड़ रहा है. जी हां, बांका मंडल कारा देश का पहला जेल बन गया है जहां बंदियों को डिजिटल शिक्षा दी जायेगी.

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भारत सरकार (Indian Government) के सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत संचालित प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण अभियान (PMGDISHA) को बांका से जेल से जोड़ने की देश स्तर से शुरुआत हुई है. इसकी शुरुआत जेल अधीक्षक सुजीत कुमार राय ने की. सीएससी के जिला प्रबंधक प्रेम शंकर वत्स ने बताया कि डिजिटल सारक्षरता प्रशिक्षण में 14 से 60 वर्ष के साक्षर-असाक्षर सभी प्रतिभागी बन सकते हैं.

मंडल कारा में 10 दिन का प्रशिक्षण चलेगा. बंदियों की संख्या के अनुरूप बैच तैयार किया जायेगा. खास बात यह है कि यहां के करीब 500 बंदी जरूर इससे लाभांवित होंगे. प्रशिक्षण के उपरांत सभी बंदियों को भारत सरकार की ओर से पंजीयन के साथ प्रमाण पत्र मिलेगा. साथ ही बंदियों का तुरंत डीजी लाॅकर बनाया जायेगा.

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इस लॉकर में कैदी अपना प्रमाण पत्र सुरक्षित ढंग से रख सकते हैं और समय-समय पर इस्तेमाल भी कर सकते हैं. प्रशिक्षण के साथ बंदी विधिवत सीएसी यानी काॅमन सर्विस सेंटर से पंजीकृत हो जायेगा. जेल से निकलने के बाद उन्हें ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार करने के लिए सीएससी की सुविधा दी जायेगी.

अगर बंदी की पत्नी जो 10वीं पास है, उन्हें भी यह सुविधा के साथ वित्तीय समावेश का काम दिया जायेगा. एक तरह से इस प्रशिक्षण के बाद सरकारी व गैर सरकारी सभी सुविधाओं का लाभ बंदी खुद से ले पाएंगे.

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जेल अधीक्षक सुजीत कुमार राय ने कहा कि केवल साक्षर होना पर्याप्त नहीं है. आधुनिक युग में हम सभी को डिजिटली ज्ञान होना अति आवश्यक है. इस पद्धति से न केवल सुविधाएं मिलने में सहजता व समय की बचत होती है बल्कि व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक परेशानी से भी बचना होता है. हालांकि, डिजिटल प्रक्रिया में जोखिम कम नहीं है.

'इस प्रशिक्षण के माध्यम से सीख पाएंगे की कैसे हम वित्तिय व सामाजिक जोखिमों से बच सकते हैं. डिजिटल क्रांति के युग में साइबर अपराधी भी बढ़े हैं. लेकिन, इस प्रशिक्षण के बाद प्रतिभागी खुद में दक्ष हो जायेंगे. यदि कोई आधार संख्या, अंगूठा व मोबाइल के जरिये बेवकूफ बनाकर राशि की अवैध उगाही का प्रयास करेगा तो सहजता से अपराधी पकड़ में आ जाएगा.': सुजीत कुमार राय, जेल अधीक्षक

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