बांका:एक दौर था जब जिले में सरकारी स्तर तक ही मत्स्य पालन का दायरा सिमटा हुआ था. लेकिन अब परिस्थितियां बदली है. आम लोग भी मत्स्य पालन के क्षेत्र से जुड़ रहे हैं. शुरुआती दौर में 500 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हो रहा था. वहीं, अब 10 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन प्रति वर्ष हो रहा है.
विभाग ने इस बार 12 हजार से अधिक मीट्रिक टन उत्पादन का लक्ष्य रखा है. बांका जिले में मत्स्य पालन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम तो बढ़ा दिया है. लेकिन अभी लंबा सफर तय करना बांकी है. अमरपुर के चंदन चौधरी जैसे मत्स्य पालक व्यवसायिक तौर पर अपनाकर नई ऊंचाई देने का काम कर रहे हैं. साथ ही दर्जनों युवाओं को मत्स्य पालन से जोड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं और आधा दर्जन लोगों को रोजगार भी मुहैया कराया है.
'सालाना 15 से 20 लाख की बचत'
चंदन चौधरी ने बताया कि 9 बीघा से अधिक जमीन यूं ही बेकार पड़ा हुआ था. मत्स्य विभाग के सहयोग से तालाब को पुनर्जीवित किया. पिछले तीन वर्षों से मछली पालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. मछली को एक किलो तक का तैयार करने में 80 रुपए का खर्च आता है. सालाना 450 क्विंटल मछली का उत्पादन कर रहे हैं. सब खर्च काटकर सालाना 15 से 20 लाख की बचत होती है. इसे बढ़ाने का भी विचार कर रहे हैं.
'लोगों को मिल रहा रोजगार'
चंदन चौधरी ने आगे बताया कि सरकार से अनुदान तो मिल रही है लेकिन वह नगण्य है. अनुदान की प्रक्रिया पर सरकार को विचार करने की आवश्यकता है. चंदन चौधरी ने आधा दर्जन लोगों को रोजगार भी दिया है. साथ ही कई युवा इनसे प्रेरित होकर मछली पालन शुरू किया है. चंदन चौधरी से प्रेरित होकर मत्स्य पालन से जुड़े कल्पतरु झा ने बताया कि वर्तमान में छोटे पैमाने पर मछली उत्पादन का काम शुरू किया है. इसे आमदनी भी हो रही है और कुछ लोगों को रोजगार भी मिल रहा है. मत्स्य पालन में अच्छी खासी आमदनी है. लोगों को इस व्यवसाय से जोड़ने की जरूरत है.
मत्स्य पदाधिकारी कृष्ण कुमार सिन्हा ने कहा :-
जिले में 847 सरकारी तालाबों के अलावा 4 हजार से अधिक निजी तालाबों में मत्स्य पालन हो रहा है.
मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रशिक्षण से लेकर बीज मुहैया कराने तक में अनुदान दे रही है.