बांका: लॉकडाउन के बावजूद पलायन का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. यहां सरकार की तमाम घोषणाएं मजदूरों के भूख और घर पहुंचने की जिद के आगे धराशाई हो रही है. रोजाना सैकड़ों की संख्या में मजदूरों का पलायन जारी है. आर्थिक तंगी से जूझ रहे मजदूर भूखे पेट, नंगे पांव ही अपने गांव की ओर निकलने को मजबूर हो रहे हैं.
कुछ ऐसा ही नजारा बांका-अमरपुर मुख्य पथ पर देखने को मिला. जहां 50 की संख्या में आदिवासी समुदाय के मजदूर सुल्तानगंज से पैदल झारखंड के हंसडीहा के लिए निकल पड़े.
पैदल ही निकल पड़े अपने गांव की ओर
जैतू और गणेश मुर्मू के परिवार की तरह ही सैकड़ों मजदूर का परिवार लॉकडाउन में काम बंद हो जाने के बाद पलायन को मजबूर हो रहे हैं. जैतू और गणेश मुर्मू का परिवार भी इसी राह पर चलकर भूखे पेट ही जल्द से जल्द अपने घर पहुंचने की जिद लिए सड़कों पर निकल पड़ा है. बांका-अमरपुर मुख्य पथ पर पैदल जा रहे आदिवासी समुदाय के मजदूरों से जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि बुधवार की दोपहर को ही खाना खाया था और गुरुवार की अहले सुबह झारखंड के हंसडीहा अपने गांव की ओर पैदल ही निकल पड़े हैं. उन्होंने बताया कि यह कदम उठाने के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ा कि काम भी बंद हो गया था और पास में पैसे और खाने को अनाज भी नहीं थे.
'रास्ते में खाने के लिए किसी ने नहीं पूछा'
हैरत की बात है कि सुल्तानगंज से पैदल आने के क्रम में ना ही मुंगेर जिले के हिस्से में इन्हें रोका गया और ना ही बांका जिले में इनकी सुधि ली गई. पास में पैसे नहीं रहने की वजह से भूखे मीलों का सफर तय करने वाले इन मजदूरों को रास्ते में किसी ने पानी और खाने तक के लिए भी नहीं पूछा. खेतों में मजदूरी करने वाले इन मजदूरों को मेहताना तो मिला, लेकिन अपेक्षा से काफी कम. अनाज को बेचकर खाने के बजाय इसे लेकर घर पहुंचना ही मुनासिब समझा. ताकि इसी थोड़े अनाज से घर में इंतजार कर रहे अन्य परिवार के सदस्यों का भरण-पोषण किया जा सके.