अररिया:मिथिलांचल में दीपावलीका अपना एक अलग महत्व है. घर में दीप जलाये जाने की मान्यताओं के साथ-साथ आकाश दीप, जिसे कैंडिल भी कहा जाता है, इसे जलाये जाने की भी पुरानी परंपरा रही है. यही कारण है कि दिवाली के मौके पर अररिया में आकाश दीप खरीदने के लिए लोगों की भीड़ देखी गई. काफी संख्या में लोगों ने आकाश दीप की खरीदारी की.
आकाश दीप को लेकर मान्यता:कहते हैं कि दिवाली के मौके पर दीपों से जिस तरह धरती जगमग हो उठती है, उसी तरह देवी देवताओं की दुनिया को आलोकित करने का यह एक प्रयास होता है. ये भी मान्यता रही है कि लोग किसी मनौती को लेकर देवताओं को कबूलते हैं फिर अवधि पूरी होने पर यानी जितने वर्षों के लिए इसे जलाये जाने का संकल्प लिया जाता है, उसके उपरान्त इसकी विधिवत पूर्णाहुति की जाती है.
आकर्षक होती है आकाश दीप की सजावट:आकाश दीप को सजाकर तरह-तरह के आकार में सजाकर ऐसा रूप दिया जाता है, जिसपर आसानी से दीप टिक जाये और बाहर रंगीन व सुंदर प्रकाश निकले. इस दीप को बांस के सहारे अधिक उंचाई तक पहुंचाया जाता है. अब बदलते समय में उंची इमारतों के कारण इसके प्रचलन में कमी आती जा रही है और बदलते परिवेश में इसकी जगह चीन निर्मित कैंडिल ने लेनी शूरू करदी थी.
ग्रामीण चाहते हैं पुरानी परंपरा को बरकरार रखना: ग्रामीण भी मानते हैं कि ये पुरानी परंपरा संस्कृति से जुड़ी है, लेकिन आज भी इसको बनाने वाले एक खास जाती के कारीगर इस परंपरा को जीवित रखने के प्रयास में जुटे हैं. बदलते परिवेश में इसका चलन भी कम होता जा रहा है. हालांकि कुछ लोग शहर में भी इसे अपनाने लगे हैं, इसीलिए इसको बनाने वाले कारीगर गांव से शहर आकर बेच रहे हैं.